Menu
blogid : 8115 postid : 673351

महिला यौन हिंसा – कितनी बदली है तस्वीर ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
  • 166 Posts
  • 493 Comments

महिला यौन हिंसा में होती बढ़ोतरी अपने आप साफ -साफ बताती है, कि तस्वीर कितनी बदली है? अतः यह समस्याए हमारे देश के वर्त्तमान न्याय ब्यवस्था और पुलिस बल का संवेदनहीन रवईया दर्शाती है .हमारे देश कि न्याय प्रणाली एकदम लचर और अक्षम नजर आती है दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतवर्ष में न्याय किसको मिलता है किसको नहीं? यह जग जाहिर है अगर कोई गरीब किसी रसूख वाले अमीरजादे द्वारा प्रताड़ित किया जाता है तब ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि उस गरीब को पैसेवाला रसूखदार आदमी पैसों के बल पर उसको मुह बंद रखने के लिए ढेर सारे पैसे देकर उसका मुह बंद कर देता है और ऐसे मामलों में न्यायलय और पुलिस दोनों ही लाचार दीखते हैं
बलात्कारों और अन्य अपराधों में बढ़ोतरी का मुख्य कारन पुलिस एवं कानून ब्यवस्था का नाकारापन है और पुलिस का यह कहना कि अब महिलाएं ज्यादा जागरूक हुयीं हैं और पुलिस को शिकायत दर्ज कराने लगीं हैं इसलिए इन अपराधों कि संख्या में बढ़ोतरी दिखती है यह सच्चाई से बिलकुल परे बात है और मेरे विचार से आज पुलिस, मिडिया के दबाव के चलते शिकायत दर्ज करने लगी है पहले भी पीड़िता शिकायत दर्ज कराने थाने में जाती थीं पर पुलिस उनको taal मटोल करके वापस कर देती थीं और महिलाएं इसलिए चुप रहने को बाध्य थीं क्यूंकि वे सोचने लगती थी कि जो उसके साथ बुरा होना था वह तो हो गया अब पुलिस उन्हें तरह तरह के गलत सवालों द्वारा उसकी इज्जत को और उछालेगी और कारर्वाई के नाम पर पीड़िता को ही ज्यादा तंग करेगी बार बार समझौता करने को दवाब डालेगी क्यूंकि अपराधी लोग ज्यादातर रसूखवाले लोगों के लड़के होते हैं जिनके लिए कानून और पुलिस कोई मायने नहीं रखती और आज तो पुलिस वाले थाने में ही लड़कियों का बलात्कार करने लगे हैं फिर ऐसी पुलिस से किसीको क्या उम्मीद हो सकती है? पुलिस सुधार कानून संसद में कितने सालों से लंबित पड़ा है और जिन लोगों पर इसमें सुधार के लिए कानून बनाने कि जिम्मेवारी है वे लोग यानि सांसद अपनी सुरक्षा पर ज्यादा और जनता कि सुरक्षा पर बिलकुल ही कम ध्यान देते हैं ऐसे में पुलिस के रवईये में कोई बदलाव कि उम्मीद करना बेमानी है .
समाज ,मीडिया एवं प्रशासन में जागरूकता जरुर आयी है और इन मामलों में समाज कि भी बहुत बड़ी जिम्मेवारी बनती है क्यूंकि बलात्कारी भी इसी समाज का अंग है किसी पिता का बेटा है और पीड़िता भी इसी समाज कि बेटी है और इसी समाज से ताल्लुक रखती है लेकिन जागरूकता के मामले में अभी जो जरूरी है वह हासिल नहीं है आज लोगों के पास अपने बच्चों को समय देने कि प्राथमिकता नहीं है बस स्कुल भेज दिया अब बच्चा क्या पढता है कहाँ जाता है?किन लोगों कि संगत में घूमता है किसी अभिभावक को पूछने – देखने का समय नहीं है पैसे कमाने कि धुन लगी है यह सोंच नहीं है कि पैसा कमा के क्या होगा? अगर बच्चा ही नालायक हो जायेगा एक बात और है लड़की और लड़के के लालन – पालन में भी भेद भाव होता है लड़कियां आज भी अपने घर में ही प्रताड़ित होती हैं यह कहकर की उसको तो पराये घर जाना है जब लड़कियां अपने माँ -बाप के घर में ही प्रताड़ित होंगी तो समाज तो प्रताड़ित करेगा ही, क्यूंकि अभी भी अपना देश पुरुष प्रधान देश ही कहा जाता है और महिलाओं के उच्च पदों पर पहुच जाने के बाद भी वे प्रताड़ित होती हैं अतः सबसे पहले इस बुराई को इस भावना को समाप्त करने के लिए जागरूकता लानी होगी जब तक इन गम्भीर प्रश्नों का हल नहीं ढूंढा जायेगा तब तक यौन हिंसा के मामलों में कमी कि उम्मीद करना बेकार है अतः समाज ,मीडया एवं प्रशासन को और गम्भीरता से लड़की और लड़के में जो भेद भाव कि भावना है इसको समाप्त करने के लिए कारगर कदम उठाया जाये इसको प्राथमिकता देनी होगी . आज लड़कियों को बहुत तरह से प्रोत्साहित तो किया जा रहा है पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है खासकर विद्यालयों में चरित्र निर्माण पर ज्यादा ध्यान देने कि जरुरत है जो आज विद्यालयों से लुप्त हो गयी है अगर लड़के एवं लड़कियों को चरित्र निर्माण की shiksha dee jayegi तो बहुत हद तक इन बुराईयों पर लगाम लगाया जा सकता है लड़कियों के प्रति लड़कों का नजरिया भी बदल सकता है पर यह सब कालेजों और स्कूलों में ही सिखाया जा सकता है और अभिभावकों को अपने बच्चों का चरित्र निर्माण कैसे हो? इसके लिए भी प्रयास करना होगा केवल पैसा कमाने के लिए badi digree le लेने से uski सोंच में badlav नहीं aane vala है
महिलाओं के प्रति नजरिया तो तभी बदलेगा जब परिवार और समाज में उनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ेगी आज समाज संवेदनहीन हो गया है और आज पुलिस एवं प्रशासन तो भ्रष्ट हैं और भ्रष्ट लोगों का ही साथ देते नजर आ रहे हैं जब तक इन जगहों से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा तब तक सामाजिक प्रश्नों का जवाब निरुत्तरित ही रहेगा आज समाज के प्रति जो जवाबदेही होनी चाहिए वह कहीं दिखलाई नहीं पड़ता आज ब्यक्ति अति स्वार्थी हो गया है और अपने आप में ही सिमित हो गया है और जब से संयुक्त परिवार टूटे हैं हमारे सामाजिक ताने बाने भी नष्ट हो गए हैं समाज का डर आज किसको है? जब हम छोटे थे तब गाव का कोई बुजुर्ग हमें किसी गलत काम के लिए प्रताड़ित कर सकता था और आज कोई किसी के बच्चे को कोई अच्छी बात भी सिखलाने की कोशिस करता है तो उसको ही बुरा भला लोग कहने लगते हैं और मेरी राय में शायद इसके कारन भी महिलाओं के प्रति नजरिये में बदलाव आया है तो सबसे पहले परिवार में महिलाओं को उचित सम्मान मिलेगा तभी जाकर समाज में उनको सम्मान मिलेगा और इसके लिए ही आज काम करने की जरुरत है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply