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महिला सुरक्छा का नया फरमान -नारी हित की चाह या सुरक्छा तंत्र की नाकामी?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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महिलाओं की सुरक्छा Jagran junction Forum
सबसे पहले मई जागरण परिवार को धन्यवाद देना चाहूँगा क्यूंकि उन्होंने महिला सुरक्छा जैसे
ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा की शुरात करी .मेरी राय में तो सुरक्छा तंत्र महिलाओं की सुरक्छा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर एकदम नाकाम रही है साथ ही ऐसे जघन्य अपराध के प्रति उनकी संवेदनहीनता भी दिखती है अक्सर देखने में आया है पुलिस पीडिता की तकलीफ से अंजन बन्ने की कोशिस करती है और पकडे गए अपराधियों के प्रति भी नरम रविया अपनाती है क्यूंकि पकडे गए अपराधी अक्सर रसूखवाले लोगों के परिवार के होते हैं और उनको तुरंत जमानत मिल जाती है मुकदमा होने के पहले वे सक्छ्यों को मिटा देते हैं और पीडिता से ऐसे अभद्र सवाल करते हैं जिससे वह परेशां होकर अपराध के प्रति सख्त कदम उठाने के बजे चुप होना ज्यादा ठीक समझने को मजबूर कर दिए जाते हैं अतः महिला सुरक्छा का नया फरमान नारी हित की चाहत कतई नहीं कही जा सकती हाँ सुरक्छा तंत्र की नाकामी जरुर कही जा सकती है . मेरी राय में महिलाएं तभी सुरक्छित होंगी जब वे मजबूती से इसका विरोध करेंगी और उन्हें संगठित होने की जरुरत क्यूंकि आज के समय में इस जुर्म का मुकाबला उन्हें ही करना होगा वर्षों से महिलाएं इस देश की राजधानी में अपनी लाज बचने में असमर्थ रहीं हैं क्यूंकि इनकी मदद महिला संगठन भी आज नहीं करती दिखाई देती अतः ऐसे अपराधों को रोका कैसे जय इस विषय पर विचार करने की जरुरत आज है , और यह तभी हो सकता है जब कानून अपन कम ईमानदारी से करे पुलिस भी कानून की मदद करे और सजा का प्रावधान इतना सख्त हो की उसे देखकर दूसरा कोई मनचला ऐसे अपराधों को करने के पहले सौ बार सोंचे न्यायपालिका ही अब महिलाओं की रक्छा कर पायेगी पुलिस तो नकार साबित हुयी ही है उलटे अपराधियों को रोकने के बजे कम काजी महिलाओं पर ही अपना सिकंजा ज्यादा मजबूत करना चाहती है .

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