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सरकार में पारदर्शीता की कमी

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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आज वर्तमान कांग्रेसी सरकार जनता की तकलीफों से बिलकुल बेपरवाह है और विरोध की हर आवाज को नाजायज करार दे रही है, मिला जुलाकर सरकार के काम करने की शैली भ्रष्टाचार को पोषित करने दोषियों को सुरक्छा प्रदान करने हर मोर्चे पर ढुलमुल रवयिया अपनाने जैसे दीख रही है पिछले दिनों कोयला घोटाले का खुलासा हुवा उसमे पीएम का भी नाम सामने आया क्यूंकि जब ये सारी गड़बड़ियाँ कोल आवंटन के दौरान हुए तब श्री मनमोहन सिंह के अधीन ही यह विभाग था कैग की रिपोर्ट जब आई तो सरकार कैग को ही दोषी ठहराने लगी जो सरकार के अधीन ही एक जाँच संस्था है और तो और यहाँ तक की सीबीआई जब सम्बंधित फाईल मांगने लगी तो उसे भी नकार दिया और तो और उसे फाईल उपलब्ध नहीं कराया गया जिससे जाँच की जा सके ऐसे में सरकार अगर ऐसा कहती है सब ठीक ठाक चल रहा है तो क्या बिपक्छ बीजेपी को यूँ चुप बैठना चाहिए आज सरकार की प्राथमिकता अगला राष्ट्रपति कौन बने ? कुछ राज्यों में होनेवाले चुनावों में क्या रणनीति अपनाई जाये की वे चुनाव में जीत हासिल कर सकें बस यही एक प्राथमिकता सरकार के पास है इसे जनता भी बखूबी देख रही है न तो इस सरकार को भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम लगाया जाये यह सूझता है न हीं विदेशों एवं देश में काला धन जो हमारी अर्थ ब्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है उसकी तरफ भी सरकार का कोई ध्यान है और सड़ता हुवा गेहूं जो किसानो ने खून पसीना एक कर उपजाया उसके रख रखाव एवं प्रबंधन का कोई ख्याल है अब बयां यह भी पढने को मिला की ये इस गेहूं को विदेशो में भी नहीं भेज सकते क्यूंकि मुनासिब दाम नहीं मिल रहा है ये इसे गरीबों में भी बाँट नहीं सकते मतलब सरकार जनहित के किसी काम को करने में अपने को असहाय और बेबस पा रही है और फिर भी बहुमत होने का दावा करते हुए सरकार में काबीज रहने का दावा ठोक रही है. क्या अपने संविधान में कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं पारित किया जा सकता जब सरकार यूँ नकारी ,असंवेदनशील हो जाये तब जनता को यह हक़ मिले की उसे गद्दी से हटा सके और बिपक्छ भी जब कुछ करने की स्थिति में न हो सामाजिक आंदोलनों को सरकार कुचलने का प्रयास करे जनता पर सरकार द्वारा उनपर हो रहे जुल्म के खिलाफ जनता आवाज उठाये तो सरकार लाठी और आंसू गैस का प्रयोग करे और दोषियों को सजा दिलाने में अदालतें देरी करे पुलिस सक्छ्यों को मिटाने हर जांच को करने खूब देरी करे और वकील दोषियों को बचाने का ही केवल काम करे और न्यायालयों में वर्षों मुक़दमे लम्बित रहें गरीबों को न्याय न मिले और सब कुछ यूँ ही चलता रहे इसे अराजकता की संज्ञा न दी जाये तो क्या कहा जाये? अतः सरकार जल्द बयां दे वह देश के महत्वपूर्ण समस्यायों के निबटारे के लिए कौन कौन से कदम उठा रही है और अगर ऐसा नहीं है तो गद्दी क्यों नहीं छोड़ रही है .

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