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यह तस्वीर शिवपालगंज की है…जहाँ डिप्टी साहेब द्वारा रागदरबारी गाया जा रहा है….जी हाँ वही श्रीलाल शुक्ल जी के राग दरबारी वाला शिवपालगंज..! .. जिसके बारे में रुप्पन बाबू ने कहा था कि इसी के माध्यम से आप देश के बाकी हिस्सों का भी अनुमान लगाते हैं और सारे देश में यह “शिवपालगंज” ही तो फैला हुआ है।
“रागदरबारी” में एक महानगर के पास बसे इस गांव में आपका प्रवेश उस रंगनाथ नाम के एक व्यक्ति के साथ होता हैं जो बेचारा बुद्धिजीवी है। गाँव के अनेक पात्रों में से एक लंगड़ भी है जो एक दिन भटकता हुआ तहसील में मेरे कार्यालय में पहुँच गया लेकिन इस बार उसे तहसील के नक़ल बाबू से खतौनी की नक़ल नहीं चाहिए थी बल्कि वह तो इंटरनेट कम्पूटर से नकली खतौनी की प्रति लेकर घूम रहा था जिसमें उसके पिता के नाम के साथ “फरार” लिख दिया गया था…लिखा भी क्यों न जाता लगभग चालीस पचास साल पहले जब उसके पिता सठियाने के उम्र में पहुंचे तो उनके मन में अचानक हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाग्रत हुई और और अपने सामान में लोटा डोर लपेटकर उम्र भर के पापों का प्राश्चित्य करने गंगा मैया की शरण में चले गए। गंगा मैया ने भी उन्हें सशरीर मुक्ति दे दी…न उनका शरीर मिला और न कोई सूचना…कुछ समय की खोज के बाद घर वालों ने भी इसे गंगा मैया की इच्छा जान उनकी खोज पर भी विराम लगा दिया…
घटना को जब दस बरस होने को आये तो इस लंगड़ ने लेखपाल से अनुरोध किया कि गंगा मैया की मर्जी थी वो तो हुयी लेकिन अब खतौनी में उनकी विरासत बना दी जाय…लंगड़ बेचारा दुखी था सो उसका अनुरोध सादा रहा होगा…सो लेखपाल ने नियम बताया कि मृत्यु का कोई साक्ष्य नहीं है इसलिए उन्हें मरा हुआ नहीं माना जा सकता और इसीलिये उसने नियमानुसार खतौनी पर लंगड़ की विरासत के स्थान पर “फरार” लिख दिया..।
लेखपाल का लिखा जैसे विधि का लेखा हो गया… वर्ष-दर-वर्ष खतौनी-दर-खतौनी लंगड़ के पिता फरार घोषित रहे..जहां कही भी वो अगर ज़िंदा होते तो कम से कम एक सौ बीस साल के तो हो ही गए होते….
लंगड़ की समस्या विकट थी सो हाकिम ने भी एक उपाय सुझाया कि
“लंगड़ भाई तुम पंचायत सेक्रेटरी से मिलकर किसी तरह उनका म्रत्यु प्रमाण पत्र बनवा लाओ…बस …. बाकी का काम आसान करने की जिम्मेदारी मेरी होगी…फिर काम चुटकी बजाते हो जाएगा”
…सो बेचारा लंगड़ तीन महीने दौड़कर किसी तरह गंगा मैया में समाहित अपने बाबूजी का म्रत्यु प्रमाण पत्र बनवा ही लाया….अब हाकिम ने भी हाथो हाथ उसकी मदद की …..और म्रत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर खतौनी में लंगड़ के फरार पिता की विरासत अंकित करने का लिखित निर्देश कानूनगो साहेब को दे दिया।
…..अब कानूनगो साहेब के सामने धर्म संकट आ गया कि डिप्टी साहेब का आदेश कैसे माने? ..फरार आदमी को मृतक घोषित करने का अधिकार तो फौजदारी न्यायालय का है..!
बहरहाल काफी ही हुज्जत के बाद अब मुझे बताया गया है कि खतौनी में लंगड़ के पिता की वरासत चढ़ गयी है…
कहीं पढ़ा था कि खुदा हर जगह अपने गधों को जलेबियां खिला रहा है और हर एक शाख पर एक- न- एक उल्लू बैठा जरूर है।…आपका क्या ख़याल है…?
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