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नन्हें का उत्तरदायित्व बोध…!

पोस्टिंगनामा
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उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जनपद में कलक्ट्रेट में तैनात एक लिपिक शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर में जब नन्हें का जन्म हुआ तब किसी ने नहीं सोचा था कि उसके सिर से पिता का साया डेढ वर्ष के भीतर उठने वाला है। अभागे नन्हें को लेकर उसकी मां अपने पिता के घर मिर्जापुर चली गयीं परन्तु नन्हें के नाना का भी देहान्त हो गया। नन्हें की परवरिश उसके मौसा की सहायता से हुयी। जब नन्हें लगभग छः वर्ष का था तो एक बालसुलभ शैतानी के अनुरूप कुछ दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया। बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!”

यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा।
यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया। उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो।

इसी उत्तरदायित्व बोध के साथ उसकी शिक्षा काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर पूर्ण हुयी। शास्त्री की उपाधि मिलने पर उसने अपने नाम के आगे लगा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हटाकर शास्त्री लगा लिया और वह प्रखर युवा लालबहादुर शास्त्री के नाम से जाना जाने लगा।

आज जब जतिसूचक शब्दों के साथ ही सारी राजनिति का ताना बाना बुना जाने लगा है तो ऐसे महापुरूषों का स्मरण आना स्वाभाविक है जिन्होंने समाज में समरसता के लिये नाम के सम्मुख अंकित किये जाने वाले जातिसूचक शब्दों को हटाये जाने की मुहिम चलायी थी।  दो दिन पूर्व ‘आखिर हम पिछडे क्यों.?’ नामक पुस्तक का लोकार्पण हुआ था जिसमें विद्धान लेखन ने पिछडे वर्ग में यादव समाज की सामाजिक प्रास्थिति की चर्चा करते हुये यह आह्वाहन किया कि उन्हें भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों में अधिकाधिक पूजा अर्चना करनी चाहिये। यहां तक कि उन्होने ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ ‘श्री कृष्ण यादव’ शब्द का उपयोग भी किया है।

बदली राजनैतिक परिस्थितियों में जब याद दिलाया जा रहा हो कि सरदार बल्लभ भाई ‘पटेल’ यानी पिछडी बिरादरी के थे तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चायिहे कि यदि कल भगवान राम को कोई ‘श्री राम भदौरिया’ या ‘ठाकुर रामचन्द्र राजपूत’ कहने लगे। बहरहाल इसे आम जन की चर्चा के छोडते हुये बताना चाहता हूं कि यही ‘लालबहादुर श्रीवास्तव’ ओह….. गलती हो गयी ….’लालबहादुर शास्त्री’ कालान्तर में स्वतंत्रता मिलने पर उत्तर प्रदेश की विधान सभा में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आकस्मिक मृत्यु होने पर भारत के प्रधान मंत्री भी बने।

उन्होंने देश में देश में अनाज के संकट को देखते हुए जहां कहीं भी खाली जमीन हो, उस पर अनाज उगाने की बात कही थी।
इस बात पर अमल की शुरुआत उन्होंने 10, जनपथ नई दिल्ली स्थित अपने निवास में बने लॉन में गेहूं उगाने के साथ की थी।….शायद तभी से भारत के सभी जनपदों में स्थित जिलाधिकारी आवासों में रिक्त पडी भूमि पर खाद्यान्न उपजाया जाने लगा है।

आज उस महान व्यक्ति की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन…!

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