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महात्माा गांधी ने बार-बार कहा कि असली भारत गांवों में बसता है। वह जानते थे कि जब तक गांवों का विकास नहीं होगा तब तक भारत अपने असली स्वरूप को नहीं पा सकेगा। वह गांवों को विकास की इकाई बनाना चाहते थे। उनका जोर स्वदेशी उद्योग पर था। वह सत्ता का विकेंद्रीकरण कर ग्राम सभाओं को अधिक से अधिक ताकत देने के हिमायती थे।
गांधी के जीवन-दर्शन से दूर हटते हुए भारत ने अपने विकास का जो रास्ता चुना वह कहीं न कहीं एकांगी हो गया। विकास का जो लाभ समाज के सभी तबकों को मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। आर्थिक असमानता की खाई धीरे-धीरे इतने चौड़ी होती गई कि उदारीकरण के बाद ‘इंडिया’ और भारत स्पष्ट रूप से दिखने लगे।
आजादी के बाद ग्रामीण क्षेत्रो से नगर की ओर पलायन ने नगरीय विकास को नये आयाम तो दिये ही हैं अनेक नगरीय समस्याओं को भी उत्पन्न किया है यही कारण है कि आजादी मिलने के बाद शुरूआती वर्षों में जहां कुछ एक महानगरों में ही नगर मजिस्ट्रेट्र के पद हुआ करते थे बीसवी सदी के आखरी दशक तक लगभग सभी जनपदों में इस पद का सृजन किया गया। इन पदों पर तैनात किये जाने वाले अधिकारी को नगरीय शांत व्यवस्था के लिये प्रमुखता के साथ कार्य करना होता है।
अभी कल ही मेरे किसी मित्र ने लिखा था कि मुझे हरदोई में तैनात हुये अधिक समय हो गया है सो अब मेरा स्थानान्तरण कर दिया जाना चाहिये और आज ही पता चला कि अब मुझे नगरीय शांति व्यवस्था के स्थान पर ग्रामीण भारत की समस्याओं से रूबरू होना पडेगा।
नई दिल्ली में बैठे वो इस असली भारत के ही बच्चे हैं जो भारतीय प्रशासनिक सेवा मे चयन हेतु लागू सी सैट के विरोध मे महज इसलिये लाठियां खा रहे है कि भारत के अधिकतर भावी प्रशासक इसी असली भारत से चयनित हों।
हरदोई के नगर मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात होने पर मुझे स्थानीय स्तर पर मीडियाकर्मी भाइयों फेसबुक मित्रों ने जो अपार और अटूट सहयोग दिया उसके प्रति अपनी कृतग्रता प्रदर्शित करते हुये उनका आभार व्यक्त करना चाहता हूं।
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव की कुछ पंक्तियां उद्धृत करना चाहूंगा
हाँ वो मैँ ही तो हूँ
जो बहता है पानी की रवानी बनकर
जो बहता है शीतल हवा बनकर
जो चमकता है आसमान मेँ बिजली बनकर
जो कड़ककर टूटकर गिरता है क़हर बनकर
हाँ वो मैँ ही तो हूँ
जो खेतोँ उगता है अन्न बनकर
जो पेडों पर लटकता है फूल फल बनकर
जो जड़ बनकर पेड़ों को खड़ा रखता है
जो मनुष्यों के जीवोँ के शरीरों में रहता है
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