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एक रोचक जानकारी मिली है कि उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की रचनाधर्मिता हरदोई निवासी किन्ही मौलवी मोहम्मद अली से भी प्रभावित थी। मुंशी जी ने अपनी एक कहानी “मेरी पहली रचना’ में लिखा है-
“….उस वख्त मेरी उम्र 13 साल की रही होगी।हिंदी बिलकुल नहीं जानता था।उर्दू के उपन्यास पढ़ने लिखने का उन्माद था।मौलाना शरर, पं0 रतन नाथ सरशार, मिर्जा रुसवा,मौलवी मोहम्मद अली हरदोई निवासी, उस वख्त के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे।इनकी रचनाएं जहाँ मिल जातीं, स्कूल की याद भूल जाती थी और पुस्तक समाप्त करके ही दम लेता था।….”
क्या किसी मित्र को इन हरदोई निवासी मौलवी मोहम्मद अली के सम्बन्ध में कुछ और जानकारी है..?
ये कौन थे..? कहाँ रहते थे..? उनके उत्तराधिकारियों में आज कौन कौन हैं? ..आदि आदि..
हिंदी साहित्य का अध्ययन करने वाले मित्रो के लिए पी- एच0 डी0 के लिये एक विषय यह भी हो सकता है…!
मुंशी पेमचंद को प्रभावित करने वाले मौलवी मोहम्मद अली अवश्य बिलग्राम के रहे होंगे क्योंकि हरदोई जनपद का बिलग्राम क्षेत्र साहित्यिक रूप से अत्यधिक समर्थ रहा है।
आजादी की पहली लड़ाई के बाद जब आम हिन्दुस्तानी नागरिक में वैचारिक चेतना जागी तो सन् 1879 ई0 में मेरे गृह जनपद सीतापुर से मोहम्मद सादिक वकील साहेब ने एक पत्रिका “तहजीब-उल-आसार” का प्रकाशन आरम्भ किया जिसके संपादक मुंशी मुन्नीलाल बिलग्रामी जी थे…!
मुंशी मुन्नीलाल जी तदसमय सीतापुर से प्रकाशित होने वाली एक अन्य मासिक पत्रिका “खजानियत-उल-उलूम” के भी प्रकाशक संपादक थे..!
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