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‘हाफ गर्लफ्रैन्ड’ बनाम ‘पूरब का बेटा’

पोस्टिंगनामा
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इघर कुछ समय से अंतरजाल पर उपलब्ध विकीपीडिया, इनकार्टा सहित अनेक इनसाक्लोपीडिया बेवसाइटों पर भारत का खंडित मानचित्र प्रदर्शित किया जा रहा है। संचार क्रांति के वर्तमान युग में प्रिन्ट मीडिया में अपना अपना पृथक सूचना संग्रहण है परन्तु अनेक अवसरों पर छपने वाले फीचरों में मानचित्र को अंतरजाल पर उपलब्ध इनसाक्लोपीडिया बेवसाइटों से ले लिया जाता है ऐसा करते हुये उस समाचार पत्र अथवा पत्रिका की अघोषित नीति का सर्वथा पालन किया जाता है साथ ही भारत की अखंडता और अश्रुण्यता का भी ध्यान रखा जाता है।
विगत दिनों ऐसे ही एक प्रकरण में एक राष्ट्रीय दैनिक में ऐसी त्रुटि हुयी जब उसने महिलाओ की लोकतंत्र मे भागीदारी  से संबंधित एक फीचर में भारत देश का ऐसा मानचित्र का उपयोग हो गया जो खंडित था।

आपको याद होगा जब ‘थ्री इडियट’ फिल्म आयी थी तो फिल्म की कहानी को लेकर चेतन भगत ने फिल्म निर्माता पर उनकी कहानी को चुराने और उनके नाम का उल्लेख न करने को लेकर काफी बाते हुयी थीं जिन सबके बीच फिल्म सुपर हिट साबित हुयी थी। तब से अब तक चेतन भगत के कई उपन्यास और फिल्में आ चुकी हैं जो अच्छी खासी सफल हुयी हैं।

अक्टूबर के पहले सप्ताह में लेखन में भारत की नई पीढी का प्रतिनिधित्व करने वाले बेस्ट सेलर लेखक चेतन भगत का नया उपन्यास पुनः छपकर आया है नाम है ‘हाफ गर्लफ्रैन्ड’। मात्र 149 रूपये की कीमत के इस उपन्यास की आन लाइन बुकिंग इसके छपने से पहले ही फिल्मों के टिकट की तरह ही हो रही थी।  अब जब उपन्यास छपकर आ गया है तो एक नवोदित लेखक जैनेन्द्र जिज्ञासु ने यह दावा किया है उनके उपन्यास ‘पूरब का बेटा’ की कहानी को आधार बनाकर ही चेतन भगत ने इस उपन्यास का ताना बाना बुना है। इस वर्ष के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने दिल्ली के शांति प्रतिष्ठान में नवोदित लेखक श्री जैनेन्द्र जिज्ञासु के उपन्यास ‘पूरब का बेटा’ का लोकार्पण किया था जिसमें इस पुस्तक पर आधारित नाटक का भी मंचन किया गया था।  इस प्रकार कुछ वर्ष पहले जो चेतन भगत दूसरे निर्माता निर्देशकों पर उनकी कहानी को चुराने का आरोप लगाते थे आज स्वयं उन पर ही एक नये लेखक की कहानी को चुराकर उपन्यास का ताना बाना बुनने का आरोप लग रहा है।

जैसा कि नाम से जाहिर है  ‘हाफ गर्लफ्रैन्ड’ भारत की उस नयी पीढी का उपन्यास हैं जो नये मूल्यों को अंगीकार कर वर्जनाओं को जीने में आनंद का अनुभव कर रही है। इसी पीढी में बिहार के डुमरिया के ठेठ गंवई वातावरण से आया हुआ माधव दिल्ली जैसे महानगर की देहरी पर आकर कान्वेन्ट एजुकेटेड लडकी रिया से टकरा जाता है।

….इस बार इस टकराहट का परिणाम वही परंपरागत सदियों पुराना नहीं होता जिसमें लडकी सबकुछ छोडकर हमेशा हमेशा के लिये लडके के साथ रहने चली जाती है। नयी पीढी की जीवन चर्या और उसकी सोच में आया बदलाव इसमें परिलक्षित होता है जब माधव के अश्लील अल्टीमेटम के बाद रिया उसके साथ इस शर्त के साथ संबंध बनाने देती है कि वह इस बात के लिये फिर कभी नहीं कहेगा।

समय बीतता है और रिया अपने बचपन के मित्र रोहन की पत्नी बनकर लंदन चली जाती है और महानगर से हारा हुआ बिहारी माधव भी लौटकर अपने प्रदेश चला जाता है। दिल्ली से अधूरे सपनों की कसक लिये गांव लौट आया माधव अब महानगर की चमक के साथ बिहार को गड्डमगड्ड करते हुये फिर कुछ नये सपने देखने लगता है जिसके केन्द्र में इस बार उसकी मां के द्वारा चलाया जा रहा स्कूल  होता है । इसकी दशा सुधारने के लिये माधव स्थानीय एम एल ए ओझा जी से मिलता है लेकिन इस बार भी उसे ठोकर ही मिलती है। इसी बीच पता चलता है कि बिल गेट्स का दौरा बिहार में होने वाला है तो माधव नये सिरे से सारी उर्जा समेटता है और साठ सत्तर के दशक की पुरानी फिल्मी कहानियों की तरह संयोग से बिल गेट्स के कार्यक्रम के दौरान रिया पुनः माधव के संपर्क में आ जाती है और उसी नाटकीयता के साथ घोषणा भी करती है कि वह फेफडों के कैंसर से पीडित है और बस तीन महीने की मेहमान है।

पुनः गायिका बनने के लिये रिया का न्यूयार्क जाना और संगीत के कार्यक्रम करना तेजी से बदलते किसी फिल्म के दृष्य अधिक लगते है। इसी शीघ्रता से बदलते कथानक में माधव एक साल बाद न्यूयार्क जाकर देखता है कि रिया तो जीवित है और उसी टाइम्स स्क्वायर पर जाकर संगीत का कार्यक्रम कर रही है जहां हाल ही जाकर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अमेरिका में बसे भारतीयों को संबोधित किया है।

समूची कहानी को पढकर सीधा सादा अर्थ निकाला जा सकता है कि यह उपन्यास चेतन भतन ने किसी फिल्मी प्लाट को मष्तिष्क में रखकर ही लिखा है। इस उपन्यास के कथानक को लेकर एक नवोदित लेखक जैनेन्द्र जिज्ञासु ने यह दावा किया है उनके उपन्यास पूरब का बेटा की कहानी को आधार बनाकर ही चेतन भगत ने इस उपन्यास का ताना बाना बुना है ।

‘पूरब का बेटा’ उपन्यास भी रोजी रोटी के संघर्ष के लिये घर छोडने की मजबूर जमींन पर ही लिखा गया है इस उपन्यास में भी रोजी रोटी के संघर्ष में मुंबई की दहलीज पर पहुंचे किशोर नामक पात्र को वहां एक बिल्डर की लडकी ऋचा से प्यार हो जाता है और अलगाववादी राजनीति समेत तमाम मुद्दों को छूते हुए पूर्वांचल से दिल्ली और मुम्बई का सफर तय कर के वापस अपने गांव पहुंचने के क्रम में उपन्यास समाप्त होता  है। इस उपन्याय में भी नायक की असफल प्रेम कहानी ही उसे वापस गांव ले आती है।गांव में भी धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाई को रोकने में खास कर मेहरूनिशा के रूप में महिला शक्ति भी दिखती है।  उपन्यास गांव लौटने पर खत्म होने की बजाय गांव से वापस न लौटने के फैसले पर खत्म होता है।

दोनो उपन्यासो को पढकर असल पाठक ही यह बता पायेगा कि जैनेन्द्र जिज्ञासु के दावे में सच्चाई है अथवा फिल्मों को हिट कराने की मार्केटिंग स्टेडिजी के अनुरूप अब पुस्तकों को भी बेस्ट सेलिंग ग्रुप में शामिल करने के लिये कुछ अफवाहें उडाने की सुनियोजित कार्ययोजना।

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