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यह सत्ता पाने का सस्ता तरीका है जहाँ करदाता के पैसों पर सत्ता सुख भोगने की चाहत में देश को पीछे ढकेल दिया जाता है और करदाता को ठेंगा दिखाकर कहा जाता है कि तुम दो चार प्रतिशत लोग हो क्या बस कर दो और समस्याएँ झेलो। दो चार फीसदी लोगों का खयाल कौन रखे न तु वोट दोगे न ही तुम्हारे देने से कोई फर्क पड़ेगा। यही वजह है कि सभी सरकारें मुस्लिमों दलितों और पिछड़ों को ही खैरात बाँटती हैं।
अल्पसंख्यक के नाम पर सिर्फ और सिर्फ मुसलमान ही फायदा उठाते हैं। जबकि अब वो किस बात के अल्पसंख्यक हैं। अल्पसंख्यक तो जैन सिख पारसी या बौद्ध हैं। परन्तु ये बिखरे हैं। ये किसी भी चुनाव क्षेत्र को प्रभावित नहीं कर सकते हैं और इसीलिए पूछे भी नहीं जाते हैं।
यहाँ पूछा वही जाएगा जो उत्पात मचा सके या दो चार सीटें जितवारपुर सके। किसीको चिन्ता नहीं है आम जनता की। किसी को परवाह नहीं है गरीब लोगों की किसी को परवाह नहीं है मरते कटते लोगों कि यहाँ तो चिंता है बस वोटों की जिसके लिए नेता देश गिरवी रखने को भी तैयार हैं।
दुर्भाग्य यह कि जनता भी दोगली है अवसरवादी है। जो जाति विहीन समाज चाहते हैं वो जातियाँ समाप्त भी नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि मलाई तो जाति के ही नाम पर मिलती है। धर्म के नाम पर जेहाद चलाने वाले कब चाहेंगे कि भाईचारा हो। इसी लिए नारे भाईचारे के परन्तु दिल में दारुल हरब, दारुल इस्लाम और गजवाएहिंद बसते हैं। और सरकारें हैं कि देश को लुटते पिटते कराहते दम तोड़ते देख रही हैं परन्तु बस मूक दर्शक बन कर। ये कोई कुछ नहीं करने वाले हैं क्योंकि ये इतना विष फैला चुके हैं कि आज हर वस्तु विषैली बन चुकी है और यही इनकी चिंता है कि कुछ सही करने की सोचने का अर्थ है सत्ता से बेदखल। पार्टियाँ कर्ज़ माफ करें या सब्सिडी दे या चोर डकैत बलात्कारी जेहादी सरकारी सम्पत्ति के लुटेरों आदि को मुआवजा दे हमें परवाह नहीं होगी परन्तु यह सब ये अपने पार्टी फंड से करे बस।
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