एक विश्वास
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कभी मोहब्बत थी पर आज जुदा हो गए हैं।
वो कसम और वफा सब बेवजह हो गए हैं॥
आसान नहीं इतना है कशिश को मिटाना।
एहसास मोहब्बत के क्यों फना हो गए हैं॥
रह के खामोश ही मुलाकातों से कई बार।
दीये दिलों में जज्बात के रोशन हो गए हैं॥
अपने हाथों की लकीरें अब फिर न मिलेंगी।
जो फर्ज मोहब्बत के थे वो अदा हो गए हैं॥
आ के एक बार कभी तुम इतना बता देते।
कि वफा के सिलसिले क्यूँ सजा हो गए हैं॥
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