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धर्म में दोहरी मानसिकता क्यों?

एक विश्वास
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जो मौलाना या मौलवी कहते हैं कि कुरआन की हर बात को मानना इस्लाम के बंदों को अल्लाह का आदेश है और हर बात को इस्लाम से जोड़ कर देश विरोधी ही नहीं देश के टुकड़े तक करने के बयान दे देते हैं वो आज तीन तलाक के मुद्दे पर कदम पीछे खींचते हुए नज़र आ रहे हैं। आज कहीं कोई अरकती बरकती या ओवैसी टोवैसी नजर नहीं आ रहे हैं। यही लोग तो हैं जो सरकारों को धमकाते हैं। दंगे करवाने की धमकी देते हैं यहाँ तक की देश के दूसरे बँटवारे तक की बात करते हैं। कश्मीर का हाल तो सब जानते हैं जहाँ जेहाद के नाम पर इस्लाम को खतरे में बता कर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। यह अलग बात है कि आजादी के बाद सत्ता के दलालों ने सत्ता पर येन केन प्रकारेण कब्जा जमाया और ऐसा दुष्चक्र चलाया कि कश्मीर हमारे लिए ही हमारे पैसे पर पल कर भी दुश्मन बना बैठा है। आज कश्मीर हमारे लिए “भय गति साँप छछूँदर केरी” वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है और देश के हालात कह रहे हैं कि कल भारत का हर राज्य इसी मुकाम पर खड़ा नज़र आएगा। जिम्मेदार नेता कल भी थे आज भी हैं परन्तु इस्लाम? कैसे जिम्मेदार नहीं है इस्लाम? ये भाग नहीं सकते परन्तु यह इनका स्वभाव रहा है यह बात अलग है। भारत का बँटवारा हुआ ही था इसलिए कि जो इस्लामी कानून का राज चाहते हैं वो पाकिस्तान में रहें और जो सब के साथ मिल कर चलना चाहते हों वो भारत को अपना राष्ट्र मानें। परन्तु गाँधी नेहरू के दुष्चक्र व दोगले व्यवहार ने ऐसा वातावरण पैदा किया कि अश्फाक और वीर हमीद की कौम भारत में रह कर जिन्ना का गुणगान करने लगी और जिन आततायियों ने जुल्मोसितम ढा कर इनका धर्मांतरण करवाया आज वही इनके हीरो बन गए हैं। हम ऐसे लोगों से कोई उम्मीदकरें तो कैसे जो अपना इतिहास भुला बैठे हैं और जो अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचार भूल गए हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि इतिहास याद कर कोई किसी से बदला ले परन्तु यह तो अवश्य कहूँगा कि इतिहास से सबक तो सभी की आवश्यकता है।
आज तक जो तीन तलाक धर्म का मसला था आज वो धर्म का मसला नहीं रहा क्या? और अगर यह धर्म का ही मसला है तो यह कैसे कह सकते हैं कि निकाहनामे में “तीन तलाक नहीं दिया जाए” लिख कर यह प्रथा समाप्त की जाएगी। कुरआन तो अल्लाह का आदेश है फिर कैसे कोई नई बात जोड़ी या घटाई जा सकती है उसमें। कुरआन के मुताबिक तो जो कुरआन से अलग जाएगा उसको यातनाएँ मिलेंगी तो क्या मौलाना या मौलवी लोग यातनाओं को भोगने के लिए तैयार हैं। इस्लाम को शांति का अग्रदूत बतानेवाले सोंचे कि संपूर्ण विश्व में जो कोहराम मचा है उसके पीछे कौन है। यह कहकर बचने का प्रयास न करें कि कुछ भटके हुए लोग हैं जो मारकाट, लूट, विश्वासघात और बलात्कार जैसे कामों को अंज़ाम दे रहे है। क्योंकि अगर ये भटके हुए है और गलत कर रहे हैं तो कुरआन के अनुसार तो इनके लिए जनाजे की नमाज़ हराम है। परन्तु इनके लिए जनाजे की नमाज़ ही नहीं होती है बल्कि इनके जनाजे को शहीदों के जनाजे से भी अधिक सम्मान के साथ निकाला जाता है। इस्लाम यही कहता है न कि जिस मुल्क में रहो वहाँ के हो के रहो परन्तु क्या यहाँ ऐसा हो रहा है। ऐसा हो रहा होता तो लखनऊ में मारे गए आतंकवादी के देशभक्त पिता द्वारा लाश को न लेने की बात कहने के बाद कुछ मौलाना और नेता इस्लाम के नाम पर उस आतंकी के पिता को बरगलाने नहीं जाते कि लाश लो और बेटे का जनाज़ा ऐसे निकालो जैसे शहीदों का निकलता है।
यहाँ पर मैं किसी धर्म विषेश की खिलाफत के लिए नहीं बैठा हूँ। मामला तीन तलाक से जुड़ा था तो यह बात निकली वरना आज कौन सा धर्म सत्य के मार्ग पर चल रहा है। ईसाई धर्म तो इस्लाम से पहले से ही वही कुकर्म कर रहा है जिसके लिए आज इस्लाम बदनाम है। इस्लाम तो ईसाई और यहूदी से शायद इसीलिए अलग भी हुआ था। भारत को जब अंग्रेजों ने अपने शिकंजे में जकड़ा तो क्या किया? वही चोरी और मारकाट। वही विश्वासघात और बलात्कार। ये वो सभ्य हैं जो असभ्यों के भी कान काटते हैं। ये जब कक्षा में पढ़ते हैं तो सूर्य स्थिर रहता है परन्तु गिरजाघर में पहुचते ही वो इनके धर्म से डरकर पृथ्वी के चक्कर लगाने लगता है। तथाकथित हिंदू कहते हैं कि उन्होंने कभी किसी की संपत्ति पर या परस्त्री पर नजर नहीं डाली। अच्छी बात है इसमें डींग हाँकने वाली बात क्या है? आज क्या कर रहे हो? भाई भाई को खा रहा है। प्रकृति पूजा से शुरू हुए और आज रोज एक नई देवी या एक नया देवता आ जाता है। खेत में मेहनत कर के अनाज नहीं उगा सकते क्योंकि श्रम नहीं करना है तो चोरी ही करोगे। बैठकर खानेवाले हमेशा गलत रास्ते ही खोजते हैं इसलिए धर्म के नाम पर शोषण करते हो। रोज नए देवता फिर उनका मंदिर फिर शुरू आस्था से खिलवाड़ का गंदा धंधा।
सच यही है कि जब किसी को धर्म की परिभाषा ही नहीं पता तो वो धर्म की बात करे भी तो कैसे? ऐसे लोग अधर्म ही करेंगे और स्वार्थ में जीनेवाले हमेशा गद्दार ही होते हैं।

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