एक विश्वास
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सिर तुम्हारे दामन में, छिपाके रोना चाहता हूँ ।
तुम्हारे आँचल की छाँव में, माँसोना चाहता हूँ॥
बिन सोए कितनी रातें, तूने काटी होंगी ऐ माँ।
मैं उन्हीं तेरे कष्टों का, हिसाब होना चाहता हूँ॥
बहाए होंगे मेरी खातिर, माँ तुमने कितने आँसू।
आज उन्हीं की एक माला, मैं पिरोना चाहता हूँ॥
तुमसे ही सीख दुआएँ, बहन सलामती की माँगें।
कुछ खुशियाँ उनके वास्ते,भी बोना चाहता हूँ॥
बात न हो बेटियों की तो, अधूरी है ये कहानी।
हर दौलत बेटियों के नाम, मैं खोना चाहता हूँ॥
बिन माँ बहन और बेटी के,घर घर नहीं होता।
इन्हें खुशियों के आँसू से, मैं भिगोना चाहता हूँ॥
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