Menu
blogid : 5061 postid : 1340321

गज़ल – माँ

एक विश्वास
एक विश्वास
  • 149 Posts
  • 41 Comments

सिर तुम्हारे दामन में, छिपाके रोना चाहता हूँ ।

तुम्हारे आँचल की छाँव में, माँसोना चाहता हूँ॥

बिन सोए कितनी रातें, तूने काटी होंगी ऐ माँ।

मैं उन्हीं तेरे कष्टों का, हिसाब होना चाहता हूँ॥

बहाए होंगे मेरी खातिर, माँ तुमने कितने आँसू।

आज उन्हीं की एक माला, मैं पिरोना चाहता हूँ॥

तुमसे ही सीख दुआएँ, बहन सलामती की माँगें

कुछ खुशियाँ उनके वास्ते,भी बोना चाहता हूँ॥

बात न हो बेटियों की तो, अधूरी है ये कहानी।

हर दौलत बेटियों के नाम, मैं खोना चाहता हूँ॥

बिन माँ बहन और बेटी के,घर घर नहीं होता

इन्हें खुशियों के आँसू से, मैं भिगोना चाहता हूँ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh