Menu
blogid : 5061 postid : 1340361

मुद्दों से बेखबर हैं सभी

एक विश्वास
एक विश्वास
  • 149 Posts
  • 41 Comments

देश के विकास के लिए कितनी संजीदा हैं हमारे देश की राजनैतिक पार्टियाँ आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं।जनता का भी कमीनापन इसमें छिपा हुआ है। हर पार्टी और हर नेता अपने अपने तरीके से देश को जाति धर्म में तोड़ रहा है। कोई मुसलमान को तो कोई किसान को, कोई दलित को तो कोई पिछड़े को भड़का रहा है। जनता भी मस्त है और इसी धुन पर कोई नागिन डांस तो कोई ब्रेक डांस और कोई कत्थक तो कोई कैबरे कर रहा है। सब को पेट्रोल पीने की चिंता खाए जा रही है परन्तु किसी को यह समझ नहीं आ रहा है कि पैसे देकर किसान आंदोलन से वोट की चाह रखने वाले जो दूध फल और सब्जी सड़कों पर फेंक रहे हैं उससे किसका और क्या भला होगा। यही आंदोलन किसान करता और कहता कि वो झुग्गी झोपड़ी में मुफ्त में सब कुछ दे देगा परन्तु नेताओं और अधिकारियों को यह सामान नहीं मिलने देगा तो शायद नीच गद्दार लोगों की नीद टूटती और कुछ सही काम होता परन्तु यहाँ तो सब दो पैसे पर बिकने वाले हैं किसी को देश की चिंता क्या होगी?

 

 

वैसे भी जिसको अपने बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है वो देश की चिंता भला कर भी कैसे सकता है। कांग्रेस को अच्छी तरह पता है कि हर दस वर्ष पर नई शिक्षा नीति लागू होती है जो पिछली से बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से बनती है परन्तु सांप्रदायिक और देश तोड़ने वाली राजनीति से कुर्सी पाने की चाह में गाली गलौज तक पर उतरने वाली कांग्रेस ने यह मुद्दा आज तक नहीं उठाया जबकि यह मुद्दा २०१६ में ही उठना चाहिए था। परन्तु सवाल यह है कि पढ़ी लिखी जनता किसको रास आएगी। कांग्रेस भाजपा सब को अक़्लमन्दों की नहीं गँवार गुलामों की आवश्यकता है। लालू मुलायम माया अखिलेश की तो सोच कभी इस काबिल हो ही नहीं सकती है क्यों कि ये सब लोग तो नकल की फैक्ट्री की पैदाइश हैं। सबसे बड़ा सवाल कि जनता क्यों नहीं समझ रही है इन बातों को? शायद इसलिए कि सब्सिडी और कर्ज़ पर पलने की और गुलामी सहने की आदत सी पड़ गई है इसे। यहाँ सब एक जैसे ही हैं। सुअर को जैसे तैसे पेट भरना और नाली में लोटना ही बेहतर लगता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh