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सन् 2019 का चुनाव भी पिछले चुनाव की ही तरह होना है। सभी पार्टियाँ वही कर रही हैं जो पिछले चुनाव में किया था। सभी ने जनता या समाज हित के मुद्दों को किनारे कर रखा है, देशहित की बात तो न पार्टियों को न ही हमारे नागरिकों को भाती है इसलिए उसकी तो बात ही करना बेकार है।
जुमलेबाजी, एक दूसरे पर कीचड़ उछाल का खेल, जाति और धर्म में विभाजन यही तो मुद्दे थे पिछले चुनाव में और आज अलग कुछ और तो होता नहीं दिखाई दे रहा है। दुर्भाग्य है देश का आज सभी जाति धर्म और भाषा में देश बाँटने के सिवाय कुछ और नहीं कर रहे हैं। काँग्रेस ने सत्तर साल यही किया फिर क्षेत्रीय दलों ने यही कुकर्म सीख कर राजपाट ले लिया और उसके बाद भाजपा ने तो इसमें बाकी सब के डिप्लोमा से आगे बढ़ कर डिग्री हासिल कर ली।
आज सवाल यह नहीं कि किसने क्या किया सवाल तो यह है कि जो किया उसका फायदा क्या हुआ है और हुआ भी है या नहीं। सच तो यही है कि सामाजिक चेतना जगाने में हम असफल रहे हैं तो निश्चित ही कोई फायदा देश या समाज को नहीं हुआ है और होगा भी नहीं क्योंकि हमारे नीति निर्धारक ही सही नीति नहीं बना पाते हैं तो लाभ कैसे मिल सकता है नीतियों का। नेहरू के प्रथम कार्यकाल से घोटालों की शुरुआत करने वाले लोग क्या भला करेंगे हमारा? नेहरू ने कोई सही शिक्षा या कृषि या औद्योगिक नीति दी होती तो देश अवश्य विकास करता और समाज पढ़ा लिखा नहीं समझदार होता। परन्तु गँवार तो गँवार ही होता है और जब वो देशभक्त न हो तो फिर तो कहने ही क्या हैं। आजादी के बाद लगातार लगभग तीस साल राज करने वाली काँग्रेस ने देश को क्या दिया सिवाय मुफ्तखोर और लालची स्वार्थी जनता के। तीस साल के लंबे अंतराल में यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गया – सब्सिडी खाना, जाति और धर्म तथा भाषा में बँटकर वोट बैंक बन देश के संसाधनों को लूटना और देश का खाकर देश को गाली देना। यही सब तो चल रहा है यहाँ पर।
जैसा चरित्र बन गया है वैसे ही मुद्दे भी नेता हमें परोस देते हैं और हम भी उसी गंदगी में लोटकर खुश होते रहते हैं। यहाँ स्वास्थ्य शिक्षा कृषि जनसंख्या रोजगार कभी मुद्दा नहीं बनेगा यहाँ तो आरक्षण भाषा जाति धर्म और मुफ्तखोरी ही मुद्दा रहेंगे। आज सत्तर साल बाद भी आरक्षण की जरूरत है क्योंकि आरक्षित यहाँ जाति या धर्म है कि इंसान।अगर इंसान को आरक्षण मिलता तो आज इसकी आवश्यकता नहीं रहती परन्तु समुदाय विशेष को सुविधा है तो लक्ष्य पूरा होगा ही नहीं क्योंकि मलाई तो कुपात्र खा रहे हैं। कृषि नीति कैसे बने क्योंकि सही नीति बनी तो हजारों एकड़ पर कब्जा जमाए बैठे नेता क्या करेंगे? शिक्षा नीतिसही कर दी तो नेताओं अधिकारियों और उद्योगपति आदि के बच्चे तो बेकार हो जाएँगे। जनता पर राज करनेवाले ख़ानदानों का कभी सोचा कि इन बेचारों का क्या होगा? राहुल तेजस्वी अखिलेश जैसों को योग्य लोगों के आगे तरज़ीह कैसे मिल पाएगी?
सब इसी व्यवस्था में ढल चुके हैं यहाँ आज किसी को विकास नहीं चाहिए सब को लूटतंत्र चाहिए और लूटतंत्र के मुद्दे तो शिक्षा रोजगार स्वास्थ्य आदि नहीं ही होते हैं।
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