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संविधान और देश का पतन

एक विश्वास
एक विश्वास
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भारत की दुर्दशा का कारण कुछ और नहीं भारतीय संविधान और गुलामी के समय से चले आ रहे नियम कानून ही हैं। संविधान ने जहाँ भी विशेषाधिकार की सड़ांध को महत्व दिया है वहीं पर हमारा और देश का अस्तित्व खतरे में पड़ा है। यहाँ जाति धर्म के नाम पर विशेषाधिकार दिया गया तो वो उत्पाती बने और जब उनको उत्पात की सजा नहीं मिली तो देशद्रोही बन गए। आज मारकाट और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाना इनका शौक बन चुका है। राज्यों को विशेषाधिकार भी इसी में आता है। कश्मीर की समस्या इसी लिए है क्योंकि कश्मीर को संविधान ने ही आतंकवादी बनने का वरदान दे रखा है और कुछ यही पूर्वोत्तर के राज्यों और असम बंगाल के साथ भी हुआ है या हो रहा है।
जजों को आप देशद्रोही बनते देख ही रहे हैं। इनके गलत फैसले पर भी इनको जूते नहीं मार सकते हैं। इनको विशेषाधिकार है कहीं भी कभी भी कोर्ट बैठा सकने की और कुछ भी कैसा भी फैसला देने की। मोदी विरोधियों के साथ हाल ही में तीन जजों को भी लोकतंत्र खतरे में लगा क्योंकि इनकी मनमानी पर अंकुश लगाया गया था। कांग्रेस ने व्यवस्था ही गलत दी है जज बनाने की। यहाँ तो किसी को भी सरकार जज बना सकती है उसकी प्रैक्टिस में वरिष्ठता को आधार बनाकर। अब ऐसे में अधिकतर जज कौन हुए। निश्चित ही कांग्रेसी हुए क्योंकि सर्वाधिक नियुक्तियाँ इसी पार्टी ने की हैं। ऐसे में मोदी राज में इनको लोकतंत्र खतरे में क्यों नही नज़र आएगा क्योंकि यही तो इनके आकाओं का कहना है।

 

पुराने नियम कानून कहते हैं कि अधिकारी कहे कि तुम चोर हो तो हो परन्तु तुम्हारे सामने अधिकारी लूटपाट भी करे तो उसको तुम चोर नहीं कह सकते हो क्योंकि या आका का अपमान है जो नियम विरुद्ध है। यही तो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है इसीलिए कोई भी इसमें बदलाव नहीं चाहता है क्योंकि सभी को इसका फायदा जो उठाना है। नेता तो सारे ही भ्रष्ट हैं जो पाक साफ है वो भी सही नहीं है क्योंकि कभी उसकी पार्टी कोई ऐसा निर्णय लेती है जो अनुचित है तो भी पार्टी के नाम पर वो चुप रहता गैस इस्तीफा देकर हटता नहीं है। मैं तो यह भी भ्रष्टाचार ही मानता हूँ। संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है कि भ्रष्ट नेताओं को उन्हें चुनने वाली जनता वापस बुला ले और कहे कि हम दूसरा नेता चुनेंगे क्योंकि तुम अपेक्षा पर खरे नहीं उतर सके।

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