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गजल

एक विश्वास
एक विश्वास
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जमाने भर के ये गद्दार क्यों यहीं समाए हैं
अब लोग मेरे देश के आपस में ही पराए हैं।

वो कहता है उसपे हमने जुल्म बहुत ढाए हैं
सच तो ये कि हम खुद उसके ही सताए हैं।

वो जो दुश्मन है हमपर गोली ही चलाएगा
पर यहाँ नश्तर दिल पे अपनों ने चलाए हैं।

जिनको खुद अपनी बातों का ऐतबार नहीं
सवाल जाने कितने आज हमपर उठाए हैं।

हमें डर नहीं उसका जो दुश्मन हमारा है
जो आस्तीन में छिपे हम उनसे घबराए हैं।

मौकाएवारदात का मुआयना कौन करेगा
हम जाहिल हैं जो हमने कातिल बुलाए हैं।

साथ इसका उसका या ढूँढो चाहे जिसका
तराजू स्वार्थ के सबने द्वार पे लटकाए हैं।

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