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असम्वेदनशील अधिकारी

एक विश्वास
एक विश्वास
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मेरे एक मित्र से मेरी बात हुई और हाल चाल के बीच उन्होंने अपने शहर की वर्तमान दुर्व्यवस्था का जिक्र किया तो मुझे लगा कि बात शायद तेरे मेरे शहर की नहीं बल्कि यह तो पूरे देश की ही समस्या है, जहाँ हर स्तर पर अराजकता का ही माहौल है। इस देश में हर व्यक्ति ना जाने क्यों किसी खास जगह पहुँच कर अपने दायित्व को भूल जाता है और उसे सिर्फ इतना ही याद रह पाता है कि वह अब आम नहीं एक खास आदमी है। यह बात सभी छोटे बड़े नेता, अधिकारी या फिर व्यवसाई से लेकर गुंडे बदमाश तक पर लागू होती है।
मित्र सेना की भर्ती का जिक्र कर रहे थे जो कि इस समय फतेहगढ़ (उप्र) में चल रही है। इस शहर में अक्सर ही ये भर्ती होती रहती है और जब भी ये भर्तियाँ होती हैं इस शहर में अराजकता का माहौल बन जाता है। दुकानें लुटती हैं, लड़कियाँ छेड़ी जाती हैं, कभी कभी तो उन्हे भीड़ में घसीटने काभी प्रयास किया जाता है और यह बात सभी जानते हैं पर इस पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। ना जाने किस बड़ी दुर्घटना का इंतजार हमारे अधिकारी कर रहे हैं। मेरे मित्र ने यह भी बताया कि एक बार बाहर से आए हुए कुछ लोगों ने पत्थरबाजी की और एक पत्थर सेना के किसी अधिकारी को लग गया तो अगले दिन कुछ अभ्यर्थियों को जानवरों की तहर पीटा गय। ऐसा तो होना ही था आखिर चोट किसी खास को जो लगी थी। किसी आम की इज्जत एक खास की जरा सी चोट के आगे क्या महत्व रखती है? खास खास है आम आम भला दोनों में समानता कैसे हो सकती है। प्रति वर्ष ये अराजकता इस शहर के लोग झेलते हैं पर किसी भी नेता या अधिकारी का ध्यान इस ओर नहीं गया। अभी कुछ ही साल बीते होंगे जब उप्र के ही लखनऊ शहर में ऐसी ही एक भर्ती के दौरान दुर्घटना हुई थी जिसमें कई लोग पानी के टैंक में डूब कर मर गए थे। ये अभ्यर्थी किसी भी शहर में इतनी बड़ी तादाद में बुलाए ही क्यों जाते है कि कोई दुर्घटना हो मैं आज तक इस बात को नहीं समझ सका। आखिर ऐसी कौनसी मजबूरी होती है जो इन दुर्घटनाओं से इन भर्तियों के आयोजक कभी सबक लेना ही नहीं चाहते हैं?
मैं समझ नहीं पाता की आखिर एक साथ एक ही दिन में कई कई राज्यों या जिलों को एक शहर में बुलाने का औचित्य ही क्या है। क्या ये भर्तियाँ कुछ लोग उन्हीं जिलों में जाकर नहीं कर सकते हैं? क्यों नहीं ऐसा किया जाता है कि पहल अलग अलग जिलों में शारीरिक क्षमता का परीक्षण कर जवानों को छाँटा जाए फिर उनको किसी बड़े शहर में बुला कर आगे की प्रक्रिया चलाई जाए और दो या तीन चरणों में इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा किया जाए। छोट शहरों में तो इस तरह की भर्ती और वो भी एक साथ, एक चरण में कभी होनी ही नहीं चाहिए।
एक बात और जेहन में आती है। अक्सर ही हम सभी सुनते हैं कि सेना का कोई जवान कभी अपने अधिकारी को तो कभी खुद को गोली मार लेता है। यह अनुशासनहीनता आखिर क्यों होती होगी सेना जैसे विभाग में? उत्तर मिल ही गया जब ऐसे अराजक लोग भर्ती में आएँगे और वो भर्ती भी हो जाएँगे तो फिर और क्या होगा? ऐसे लोग देश का भला क्या करेंगे? ये तो बस अपना ही भला करेंगे और हो सकता है कि इनसे ये भी ना हो सके। रही बात व्यवस्था की तो इतना ही कहा जा सकता है कि इतने पढ़े लिखे समझदार लोग अगर सही और गलत का निर्णय नहीं कर सकते तो फिर इस देश का क्या होगा? अधिकारी चाहे जहाँ का हो उसे संवेदनशील तो होना ही चाहिए जो आज देखने को कम ही मिलती है।

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