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शीर्षक पढ़कर यह कहना ठीक ही है कि भई, ऐसा क्यों लिखते हो? जीत तो सुख ही देती है। जरूर, लेकिन अगर क्रिकेट में हारने वाली वेस्टइंडीज जैसी टीम हो तो मेरे जैसे प्रशंसकों को निराशा होती है। इसलिए क्योंकि उनकी ऐसी पराजय क्रिकेट के हित में नहीं। भारत से चल रही मौजूदा सीरीज में भले ही वह चौथा वन डे जीत गए हों लेकिन सीरीज पहले ही हार चुके हैं। तीन मैच लगातार और वह भी दूसरे दर्जे की टीम से जिसमें आधे से अधिक खिलाड़ी तो इसलिए हैं क्योंकि उनके ख्यातिनाम सीनियर आईपीएल की थकान उतार रहे हैं।
थोड़ा पीछे लौटते हैं। याद करें होल्डिंग का रनअप, क्लाइव लायड के हाथ में तिनके की तरह झूलता बैट, रिचडर्स की बिंदास आक्रामकता, लैरी गोम्स की स्थिरता, डेसमंड हेंस और ग्रीनिज की सदाबहार ओपनिंग जोड़ी, मैल्कम मार्शल की गति और उस पर कानपुर के ग्रीन पार्क में गावस्कर के हाथ से छूटता बल्ला और यह देखकर सदमा खाते हम भारतीय। जैसे दो बरस पहले तक आस्ट्रेलिया का विश्व क्रिकेट पर दबदबा था, वैसे ही कभी कैरेबियन क्रिकेट दुनिया में छायी थी। सुनील गावस्कर को बहुत से लोग अगर सचिन तेंदुलकर से एक डिग्री ऊपर का बल्लेबाज मानते हैं तो केवल इसलिए क्योंकि गावस्कर ने वेस्टइंडीज के धुरंधर गेंदबाजों को उन्हीं के घर में बिना हेलमेट के मारा था।
और अब…उसी वेस्टइंडीज टीम के सामने पार्थिव पटेल ओपन करने उतरते हैं और गेंदबाजों को फ्रंट फुट पर मारते हैं तो उस बॉलिंग पर केवल दया ही की जा सकती है। धौनी और युवराज की दीवानी नई पीढ़ी मेरी बात से शायद सहमत न हो लेकिन जिन्होंने क्रिकेट के इन सबसे स्वाभाविक एथलीटों को मैदान पर शास्त्रीयता और उत्साह का संगम करते देखा है वे भी इस पतन पर जरूर दुखी होंगे। वेस्ट इंडीज की हालत जिम्बाब्वे जैसी हो गई है जिसे हराकर दूसरी टीमें अपनी रेटिंग सुधारती हैं और खिलाड़ी अपना औसत। क्रिकेट कैरेबियाई द्वीपों का हमेशा से प्रमुख खेल रहा लेकिन एथलेटिक्स के साथ फुटबॉल ने उसके लिए चुनौतियां खड़ी की हैं। वहां के बोर्ड ने कई बार अपने संसाधनों की कमी का हवाला दिया है। ऐसे में चीन और अमेरिका में क्रिकेट को लोकप्रिय करने की कोशिशें कर रहे आईसीसी को आगे आना चाहिए। उसके साथ ही बेहिसाब दौलत से कुल्ला मंजन करने वाले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी क्रिकेट के इस पुराने बादशाह की मदद करनी होगी…वहां की पिचें तेज बनानी होंगी।
क्या ऐसा होगा!!!
आशुतोष शुक्ल
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