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बेखबर तुम !!!

मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
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खो दिया तो तुमने

सब कुछ उसके लिए

अब बताओ तुमको

बदले में उसने क्या दिए


ज्ञान वाली दिव्य ज्योति

क्यों तुम्हारी बुझ गयी

पत्ती चहुँ विकास की

क्यों नहीं नीकली नयी


भद्र जन तुमको तो

बारम्बार समझाते रहे

लेकिन तुम और भी

उसके करीब जाते गए


तुम तो कहते थे

हर साँस तुम्हारी है वही

गर्त में तुम गीर रहे थे

ख्याल तुमको था नहीं


तन्द्रा तेरी तब टूटी

नैया तुम्हारी डूब गयी

जली -जलाई तेरी

दीपक की बाती बुझ गयी


सावधान ! रे पगले

कलजुग की गाडी चल रही

परख सही से स्वर्ण कलस में

मदीरा तो नहीं है भरी

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