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कवि की पुकार

मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
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हे नाथ सकल सृष्ठि के
बस अब तू ही सहारा
ज्ञान का प्रकाश भर दो
तम का तुम अवसान कर दो

होने दो अब तो सबेरा
बहुत हो गया अँधेरा
दिव्यज्योति दे दो हमें तुम
जनों का कल्याण कर दो

करो न अब बिलंब नाथ
सुन लो मेरी पुकार
लघुता का नाश करके
पूर्णता विकाश कर दो

ऊँच- नीच की भावना
तेरे जनों में जो भरी
हे प्रभु उसको मिटाकर
साथ-साथ चलाना सिखा दो

इस धरा पर दिव्या गंगा
ज्ञान की जल्दी बहाकर
अवनी का उद्धार कर दो
वैतरणी से पार कर दो

आशु

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