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छोड़ दो !

मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
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ऐ पड़ोसी मुल्क अब
अपनी ये नीचता छोड़ दो
दिल जो टूटे पड़े है
अब तो उनको जोड़ दो

छोड़ दो आतंक का दामन
जंजीरों को तोड़ दो
उन्नति चाहते हो गर तो
हिंसा से मुंह मोड़ दो

बुद्ध की एस शांति वन में
घोलते हो बिष क्यों
शर्म करो अब भी तो थोडा
फल रहें हम ज्यों के त्यों

कर बमन अब विष का
जो उदर में तेरे भरा
शांति और सुखमय बनाओ
विश्व की सारी धरा

क्या कमी है तुझे
आ हमें बता
जल रहें जिस आग में
उस आग को अब दो बुझा

जल नहीं था पीने को जब
क्या जल नहीं दिए हम ?
सोचने को दिल नहीं था
दिल दिए हम

बदले में तुने घर में मेरे
आतंक का जाल फैला दिया
हो कितना तुम विश्वाशघाती
जग को भी ये बता दिया

पर दे रहें एक और मौक़ा
अपने में सुधार कर लो
चाहकर जी से अमन
अब दोस्ती उधार कर लो

दोस्ती को हम निभाना
अच्छी तरह है जानते
दोस्त जो माने हमें
खुदा है उनको मानते

जो दिल दे सकते किसी को
क्या नहीं वो दे सकते
मांग कर देखो तो कभी
नहीं हम नहीं करते

चाँद गर मांगो
जमीं पर ला भी देंगे
पर जुंबा पर गर कभी कश्मीर लाया
माँ कसम तुमको सदा मिटा भी देंगे

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