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तू सबल है ,तू समर्थ है
फिर सहम कर क्यों खड़ा है
लाल लहू है रगों में तेरे
नीर्जिव सा फिर क्यों पड़ा है
क्यों अपने को जड़ मानता
सब कमियों की गढ़ मानता
हाथ है दो पास तेरे
फिर क्यों लेता मन के फेरे
पथ में आ ही गया तो
भंवर से तू क्यों डरा है
छुद्र सी छोटी बला से
जीवित ही तू क्यों मरा है
सृष्ठी की सर्वोच कृति तू
ये नहीं क्यों सोचता है
वर स्वरुप सब कुछ मिला
फिर घूम-घूम क्या खोजता है
नसों में तेरे खून बहता पूर्वजों का
या सागर का छुद्र पानी
फैसला तू आज कर ले
आन का ,प्राण का और स्वयं के अभिमान का
मसल कर तू अड़चनो को गोल कर दे
तूफा सी निज वेग से भूडोल कर दे
देख ले सारी जहाँ भी
बाजुओं के दम का आज तोल कर दे
ठोस को तू नीर कर दे
पत्थर में लकीर कर दे
दे धरा पर पांव ऐसे
बिघ्न को तू क्षीण कर दे
विकट समय में धैर्य न खोना
सफलता की ये रीति है
दृढ निश्चय का है फैसला तो फिर क्या
तू जीत है ! तू जीत है !!
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