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निर्लज पाक

मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
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भारत माता के चरणों का
नित वंदन का भागी हूँ
कहना न कुछ चाह रहा था
कह देने का आदी हूँ

बात है उस पड़ोसी की
जो पश्चिम में अपने बसता है
दाने-दाने को मरता रहता
फिर भी हुंकार जो भरता है

पाक नाम का छुद्र देश
नापाक इरादे जिसके हैं
उस जड़ को क्या पता नहीं?
सुभाष,भगत सिंह किसके हैं

शांति की बात कहकर
घुसपैठ करवाता है
मुंह पर जब लात पड़ता
आह-आह चिल्लाता है

वह निर्लज ,जड़, कुकर्मी
नहीं कभी अपने गिरेवान में झाँका है
हिंदुस्तान की कुंवत को
क्या अभी तक नहीं आँका है ?

उसकी ओछी हरकतों को
हम कब तक सहन कर पाएंगे
उसे मसल कर रख देंगे
कुचलते हुए इस्लामाबाद तक जायेंगे

फौलादी इन बाजुओं का
रक्त जब भी उबल जायेगा
सोच नहीं पायेगा कुछ वह
दुनिया के नक्से से नामोनीसा मिट जायेगा

परमाणु बमों का वह गुमान
सब चूर -चूर हो जायेगा
सुबह की जब नींद खुलेगी
चाहुओर तिरंगा ही नजर आयेगा
तिरंगा ही नजर आयेगा !!!

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