मंजिल की ओर
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कृषक भारत का दृढ है चट्टान जैसे
सोचता है मान जाऊ हार कैसे
ग्रीष्म वर्ष हो या फिर रात काली
अडचने सब तोड़ देता राह वाली
सूर्य भी न उसके कदम को रोक पाता
शिशिर उससे भाग कोषों दूर जाता
है सदा सत्कर्म ही उसकी निशानी
ठीक ही भारत माता ने उसे ही सपूत मानी
अति हो या आनाबृष्टि हर नहीं मानता
स्थिति ऐसी वह कुएं खोद डालता
है जगत को अन्न देता रात -रात भर जागकर
दिन -रात मेहनत करता है माँ का कहना मानकर
ऐ कृषक नमन है तेरा आशु कुमार की
कृपा तुम पर रहे सदा राम,कृष्ण ,गोपाल की
फसलें लहराती रहें और भौरें गुनगुनाते रहें
देखकर मुस्कान तेरी चाँद भी मुस्काते रहें
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