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वो कौन थी ??
सावन की बहारों में
वह थी खड़ी छत पर
चाँद सी सीतारों में
देख रहा प्रकृती का अनुपम नजारा
झूमते तरू ,मलय पवन
तटिनी का उन्मुक्ता कीनारा
उस नीलीमा पर आकर
हलके नीले अम्बर उसके
खुश थे उसे सजाकर
अती सुन्दर रजत दन्त पक्तियां
लगता जैसे हो उसके अन्दर
अगनीत दीव्य शक्तीया
स्वक्छंद होकर ले रही आनद थी
उस समय वह ही थी सायद
सर्व सुख सम्पन्न प्राणी इस धरा का
और सामने कभी अवनी की सुन्दर छठा को
कभी अंजली भर जल लेकर स्वयं को नीहारती
पता नहीं अपने कीस पीय को वह थी पुकारती
पर उस खुसी का अंत भी होना ही था
धीरे-धीरे तम ने समेत लीया उसे अपने अन्दर
ऑंखें फीर न देख सकी उसे इन्हे तो रोना ही था
मै जा बैठता उस छत पर
इस आशा के साथ की सायद वह कहीं से आ जाय
उस दिन की ही तरह इन नयनो में छा जाय
होगी कोई परी या फीर राजकुमारी जन्नत की
या प्रकृती की छोटी तनूजा
अती आनंदीत वीचरण करती होगी नीले अम्बर में
चंचल वाणी मेरी मौन थी
बार – बार दिल यही पूछता
मुझे बता वह कौन थी ? वह कौन थी ?
आशुतोष कुमार
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