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सम्भल जा रे पाक !!!

मंजिल की ओर
मंजिल की ओर
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KASHMIR
सम्भल जा रे पाक !
अपने नापाक इरादो से
भला इसी में है तेरा
सबक लो तुम खताओं से

बम -बारूद ही क्या
तुने अंगार बरसाए
सिवा स्वयम के अपमान का
हिंद का कुछ कर भी पाए ?

बार- बार ही तुमने
इधर आँखें उठाई
चुप रहे हम तो
इसकी हंसी उड़ायी

हस्र इसका तुम्हे पता है
हरदम मात खानी पड़ी
भाग गए तेरे सभी मेमने
क्या यही तुमने जंग लड़ी ?

कान खोल सुन रे दुष्ट !
हिंद खून जब खौल जाता
तू क्या महाकाल भी
पथ अपना छोड़ भाग जाता

आशुतोष अम्बर

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