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एक बूढ़ा बढई अपने काम के प्रति निष्ठावान और सज्जन व्यक्ति था . उसकी बनाई वस्तु देखने लायक होती थी, वह ठेकेदार के साथ मिलकर ठेकें पर वस्तुओं का निर्माण करता, उसकी बनाई वस्तुएं दिखने में सुन्दर, शोभायमान और मजबूत होती. उसकी कलात्मक रूचि वस्तुओ पर झलकती थी,उसके जैसा कोई दूसरा कामगार नही था. एक से बढ़कर एक नई कलात्मक रूपरेखा से परिपूर्ण वस्तुओं का निर्माण करता था. काम करते करते वह वृद्ध हो चला था. वह बीमार रहता था और उसे घर की चिंता लगी रहती थी. उसने एक दिन ठेकेदार से घर जाने की बात कही तो ठेकेदार ने उसे पैसे देकर सुसज्जित घर बनाने को कहा और साथ ही कहा की तुम यह काम पूरा करके अ सकते हो,बढई घर जाने को जानकर अपने को इतनी जल्दी और हड़बड़ी में पूरा करने लगा कि उसकी यह रचना उसकी जिन्दगी की सबसे बेकार कलात्मक क्रिया थी जैसे तैसे उसने काम को पूरा किया और काम पूरा करने के बाद वह ठेकेदार के पास गया तो ठेकेदार उसे नया घर रहने के लिए तोहफे में दिया. बढई सोच कर परेशान था कि मैंने आज तक सभी के लिए कितने अच्छे, सुन्दर और शोभायमान कलाकृतियों का निर्माण किया, अपने लिये बनाये घर को इतना बदसूरत निर्मित किया.
” व्यक्ति का काम ही उसकी पहचान होती है व्यक्ति को प्रत्येक काम को निष्ठापूर्वक करना चाहिए, क्योंकि पता नही कौन सा काम अंतिम काम हो” .
-आशुतोष सिंह
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