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कल अपने पहले ब्लॉग में मैंने विचार प्रकट किया था कि यदि सभी सक्षम परिवार अपने आस पास के या अपने यहाँ काम करने वाले कार्य कर्ताओं के बच्चों की पढाई की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले और केवल उन बच्चों के पढाई सम्बन्धी आवश्यकताओं को ही पूर्ण करे . इससे निश्चित हमारे सामाजिक ढांचे में बदलाव आएगा . गत वर्षों के परीक्षा परिणामो के अध्ययन से ये निर्णय निकलता है कि जिस वर्ग के पास अपनी विशेष जरूरतों को पूरी करने के लिए भी पैसे नहीं थे
उन घरों के बच्चों ने आश्चर्य जनक परिणाम दिए है और समाज को दिखा दिया है कि हम कुछ न होते हुए भी सब कुछ कर सकते है और सभी ऊंची कुर्सियां हमारे लिए भी है . इसके सर्वश्रेष्ठ प्रतिमान स्वयं हमारे प्रधानमंत्री और उनके कुछ सहयोगी भी है. वही दूसरी तरफ संपन्न घरों के बच्चे केवल टीवी , मोबाइल एवं नए ऐप्प्स और नए रेस्त्रौन्त के विषय में ही बात करते है . वो पढाई भी इंटरनेट और फ़ोन पर ही करना चाहते है , ये चीज़े यदि समय पर उपलब्ध न हो तो उनकी पढाई रुक जाती है और वे समस्या ग्रस्त हो जाते है , पुस्तकों के स्थान पर वे इंटरनेट से ही काम चलाना चाहते है ,.
मेरा आग्रह ऐसे सभी बच्चों और उनके माता पिता से है कि वे अपने अनावश्यक खर्चो में कमी करके अपने कर्मचारी या अपनी काम वाली बाई के बच्चों की
फीस भर दें या उनके लिए किताबे खरीद दें जो कि कुछ ही आइसक्रीम और बर्गर या कोल्ड्ड्रिंक के खर्चों के कटौती से ही हो जायेगा . परन्तु मैंने जैसे कि कल
निवेदन किया था , उनके हाथ में नगद पैसे न दे जिससे कि आप की परिश्रम से कमाए गए धन का सही उपयोग हो सके .
इससे हमारा सामाजिक ताना बाना और मज़बूत हो सके और जो बच्चा परिश्रमी है उसको उसका पूरा अधिकार मिले .
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