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आजकल ग्वांगझाऊ चीन में 16वें एशियन गेम्स चल रहे हैं. 2010 के एशियन गेम्स की खास बात यह है कि यह अब तक की सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता है. 14 दिनों तक चलने वाले इस बार के एशियन गेम्स में कुल मिलाकर 42 खेल स्पर्धाएं और 476 इवेंट्स हैं जिसमें 10,000 से भी ज़्यादा एथलीट भाग ले रहे हैं. एशियन मंच की इतनी बड़ी खेल स्पर्धा हो रही है लेकिन भारत में इन खेलों के प्रति लोगो में रूचि कम दिख रही है.
अभी हाल ही में दिल्ली में 19वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया गया था. खेलों में रूचि रखने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा था. लोकप्रियता का ऐसा डंका बजा था की बच्चा-बच्चा समरेश जंग और सुशील कुमार को जानने लगा था. लेकिन अब राष्ट्रमंडल खेल बीत चुके हैं और जाते-जाते हमारे लिए सुनहरी यादें छोड़ गए.
समय बीता और एक महीने बाद चीन के ग्वांगझाऊ शहर में 12 नवम्बर से एशियन गेम्स आरंभ हुए. हमने भी अपनी सबसे अच्छे खिलाड़ियों को इस आस में ग्वांगझाऊ भेजा कि वह एशियन गेम्स में भी राष्ट्रमंडल खेलों की तरह अच्छा प्रदर्शन कर स्वर्ण पदकों की झड़ी लगा देंगे. लेकिन सिर्फ आशा करने से कुछ नहीं होता. पदक जीतने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. इसके अलावा एशियन गेम्स में अब भारत का मुकाबला होने वाला था चीन, दक्षिण कोरिया, जापान जैसे राष्ट्रों से. जिन्हें अच्छी तरह पता है कि स्वर्ण पदक कैसे जीता जाता है.
लेकिन यहाँ बात अगर सिर्फ खिलाड़ियों की करें तो अच्छा नहीं होगा. गौर करने वाली बात यह है कि इस बार के राष्ट्रमंडल खेलों में हमने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. शायद इसका मुख्य कारण भारतीय परिवेश था. वह इसलिए कि हम जिस खेल में भी भाग लेते जनता हमारे साथ होती. उत्साहवर्धक नारों से पूरा स्टेडियम गूंज जाता जो खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बढ़ाता और उन्हें कुछ करने की प्रेरणा देता. अगर आपने राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं की 4×400 मीटर दौड़ का फाइनल देखा होगा तो यह साफ़ हो गया होगा कि अगर आपके पीछे देश हो तो आप कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं.
परन्तु एशियन गेम्स में मामला शांत है. अगर हम लोगों से इस बार के एशियन गेम्स के बारे में पूछते हैं तो शायद उनका पहला उत्तर यह होगा कि यह एशियन गेम्स क्या हैं? और ऐसी स्थिति में वह हमारे खिलाड़ियों का समर्थन क्या खाक करेंगे. लेकिन बात केवल इतनी नहीं है. दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों से पहले कौन जानता था कि यह राष्ट्रमंडल खेल किस बला का नाम है लेकिन अब बच्चों से लेकर बुड्ढों तक सभी को पता है. क्या यही हाल एशियन गेम्स का नहीं हो सकता. आखिरकार जब आखिरी बार 1982 में एशियन गेम्स भारत में हुए थे तो हमने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और बच्चा-बच्चा जानता था कि अप्पू एक हाथी का नाम है.
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