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पूर्व विश्व स्नूकर चैम्पियन पंकज अडवाणी ने ग्वांगझाऊ चीन में बिलियर्ड्स के एकल मुकाबले में स्वर्ण पदक जीत भारत के विजय रथ का आगाज किया. इसके अलावा शूटिंग में भी भारत ने पदक जीते जबकि टेनिस में हमने पदक सुनिश्चित कर लिया है. कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि एक अच्छी शुरुआत हुई है.
पंकज का स्वर्णिम शॉट
पंकज आडवाणी पर हमें पूरा भरोसा था कि यह गोल्डन बॉय ऑफ इंडियन बिलियर्ड्स कुछ कारनामा ज़रूर करेगा और ऐसा हुआ भी. फाइनल में म्यांमार के वू ने थावे वू को 3-2 से मात देकर पंकज आडवाणी ने ग्वांगझाऊ में भारतीय तिरंगे को लहराने के सिलसिले की शुरुआत की. लेकिन अभी तो शुरुआत है देखना यह है कि 16वें एशियन गेम्स में तिरंगा कितनी बार लहराता है.
शूटिंग में भी हमने पदक जीते लेकिन जो स्वर्ण पदकों की झड़ी हमने राष्ट्रमंडल खेलों में लगाई थी उसे हम दोहरा नहीं पाए. गगन नारंग एंड कंपनी ने अब तक शूटिंग में चार पदक जीते हैं लेकिन अभी भी वह स्वर्णिम निशाने से दूर हैं. शायद इसका कारण यही है कि चीन के सामने हमारी एक नहीं चलती. लेकिन ऐसा क्यों? यह एक बार नहीं हुआ है पिछले खेलों में भी हम चीन के सामने हारते हुए दिखे थे. क्या चीन के सामने हमारी किस्मत साथ नहीं देती या फिर उनकी प्रैक्टिस हमसे ज़बरदस्त रहती है? उत्तर कुछ भी हो लेकिन परिणाम यही रहा कि “विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के सामने विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हार गया?
दो दिन में राष्ट्रमंडल !
इसे कहते हैं परफेक्ट शुरुआत. अभी एशियन गेम्स के केवल दो दिन ही खत्म हुए हैं और चीन ने अब तक 37 स्वर्ण पदक जीत अजेय बढ़त बना ली है. इतने स्वर्ण पदक तो हमने पूरे राष्ट्रमंडल खेलों में जीते थे और जिससे हम पूर्णतया संतुष्ट भी दिखे थे. लेकिन चीन की भूख अभी भी नहीं मिटी है. “आखिरकार इतनी जनसंख्या ने लिए 200 स्वर्ण पदक की ज़रूरत तो होगी ही.” चीन का दबदबा सभी खेलों में दिखा जिसका तोड़ “दक्षिण कोरिया के पास भी नहीं था.” और ऐसा हो भी क्यों नहीं आखिर मेजबान देश होने के नाते और 2008 के बीजिंग ओलंपिक में पहले नंबर पर रहने वाले देश पर दबंगई दिखाने का पूरा हक है.
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