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आज बहुत कम लोग ऐसे होंगे, जो यह बात जेहन में रख दिन की शुरुआत करते हैं कि कुदरत से हमें जो भी मिलता है, बिना शर्त मिलता है, इसलिए स्वार्थ से परे होकर कुछ लौटाएं भी। धर्म के नजरिए से भी गौर करें तो प्रकृति की हर क्रिया हर रोज नि:स्वार्थ होकर जीने को प्रेरित करती है। प्रकृति हवा, पानी हो या फिर रोशनी सब कुछ बेशुमार और बिना अपेक्षा के लुटाती है।
आज के दौर में गलाकाट प्रतियोगिता के नाम पर स्वार्थ के वशीभूत कई लोग प्रकृति, इंसान या फिर इन दोनों को जोड़ने वाले हर रिश्तों से जुड़ी कई अहम जिम्मेदारियों व बातों को दरकिनार करते चले जाते हैं और आखिरकार इनको नजरअंदाज करने के कई बुरे नतीजे भी भुगतते हैं।
ऐसी सोच व हालात से बचने के लिए हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवदपुराण कुदरत व ईश्वर से जुड़े कई रहस्यों के जरिए जीने के सलीके व सही तौर-तरीकों को उजागर करता है। इस महापुराण में उजागर एक महायोगी से जुड़ा प्रसंग आज के दौर में इंसान व प्रकृति या फिर इंसानी रिश्तों में बढ़ते टकराव, तनाव से निपटने के लिए कुदरत से जुड़े ऐसे 24 रहस्य उजागर करता है, जिन पर आमतौर पर कई लोग गौर नहीं करते।
शास्त्रों के मुताबिक ईश्वर का ज्ञान स्वरूप व शक्ति गुरु के रूप में पूजनीय है। इसलिए गुरु सेवा, भक्ति या स्मरण मात्र से मिले ज्ञान, सत्य, प्रेरणा व शक्ति से ही जागा बुद्धि और विवेक जीवन की तमाम परेशानियों से उबारने वाला भी माना गया है।
हिंदू धर्म परंपराओं में गुरु व परब्रह्म के विलक्षण स्वरूप में त्याग, तप, ज्ञान व प्रेम की साक्षात् मूर्ति भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है। वे महायोगी व त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश का त्रिगुण स्वरूप भी माने जाते हैं।
पौराणिक मान्यता के मुताबिक ब्रह्मदेव के मानस पुत्र महर्षि अत्रि व कर्दम ऋषि की कन्या तथा सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक कपिल मुनि की बहन सती अनुसूया इनके पिता व माता हैं। अत्रि मुनि का पुत्र होने की वजह से भी इनको आत्रेय भी पुकारा गया और दत्त व आत्रेय को मिलाकर दत्तात्रेय नाम हुआ।
वे त्रिदेवों में भगवान विष्णु के सतगुणी अंश बताए गए हैं। इससे जुड़े प्रसंग के मुताबिक त्रिदेवों द्वारा ली गई देवी अनुसूया की सतीत्व की परीक्षा में सफलता के फलस्वरूप त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु व महेश के रज, सत व तमोगुणी अंशों से क्रमशा सोम, दत्तात्रेय व दुर्वासा का जन्म हुआ।
भगवान दत्तात्रेय स्मर्तृगामी हैं। यानी वह अपने शरणागत भक्त के बुलाने या स्मरण करने भर से फौरन संकट दूर करते हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा इनकी प्राकट्य तिथि है। मान्यता है कि वे रोज सवेरे काशी में गंगा स्नान करते हैं।
महायोगी दत्तात्रेय अवधूत व श्री विद्या के आदि आचार्य हैं। दत्तात्रेय ने शिवजी के पुत्रों श्रीगणेश व कार्तिकेय को कई विद्याएं सिखाई। परशुराम को श्रीविद्या प्रदान की। कार्तवीर्य अर्जुन को तन्त्रविद्या सिखाई। भक्त प्रहलाद को अनासक्ति योग की शिक्षा देकर श्रेष्ठ राजा बनाया। सांकृति मुनि को भी अवधूत विद्या प्रदान की। रसायनज्ञ नागार्जुन को रसायन विद्या भी दत्त कृपा से ही मिली। गुरु गोरखनाथ को प्राणायाम, आसन, मुद्रा व समाधि, चतुरंग योग का मार्ग योगी दत्तात्रेय ने ही सिखाया।
इसी कड़ी में श्रीमद्भागवदपुराण में राजा यदु को योग और अध्यात्म के उपदेश के दौरान खासतौर पर भगवान दत्तात्रेय का 24 गुरुओं से सबक सीखने का प्रसंग प्रकृति के अद्भुत रहस्यों के साथ जीवन में गुरु की अहमियत को रोचक तरीके से उजागर करता है। क्योंकि ये 24 गुरु मात्र इंसान ही नहीं बल्कि इनमें पशु, पक्षी व कीट-पतंगे भी शामिल हैं।
श्रीमद्भागवद महापुराण के प्रसंग के मुताबिक महायोगी दत्तात्रेय ने राजा यदु की अनासक्त व मोह से दूर जीवन से जुड़ी जिज्ञासाओं को दूर करते हुए बताया कि मेरी नजर जहां भी पड़ी मैंने वहां गुरु को पाया। इसी कड़ी में पशु-पक्षी व मानवीय जीवन में इन 24 गुरुओं के जरिए कई रहस्य उजागर कर यह भी सबक दिया कि ज्ञान के लिए गुरु के साथ खुद का बुद्धि व विवेक भी बेहद जरूरी है।
1.पृथ्वी – महायोगी दत्तात्रेय के मुताबिक पृथ्वी से क्षमा, सहनशीलता व परोपकार की भावना सीखनी चाहिए। क्योंकि इसमें डाला एक बीज वह कई बीजों में बदल देती है और की गई तमाम गंदगी को भी ढोती है और खुद में समा लेती है।
2.वायु – जिस तरह हवा अच्छी या बुरी जगह के संपर्क में वैसे ही गुण ग्रहण कर लेती है, किंतु इसके बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छ रहता है। इसी तरह अच्छे-बुरों के साथ या वक्त में भी अपनी अच्छाइयों को कायम रखें।
3. आकाश- आकाश पंचतत्वों के रूप में अंदर भी है और बाहर भी। यानी हर जगह है। ठीक आत्मा भी इसी तरह हर जगह मौजूद होती है। इसलिए हर देश- काल स्थिति में अछूते रहें, यानी जुड़कर भी लगाव से दूर रहें।
4. जल – जल पवित्र होता है और उसका अपना कोई आकार नहीं होता। हर प्राणी को पवित्र रहना चाहिए और स्थितियों के मुताबिक ढलना चाहिए।
5. अग्नि – जिस तरह अलग-अलग तरह की लकड़ियों के बीच भी आग का ताप, प्रकाश और तेज एक जैसा रूप ले लेता है, उसे कोई समेट या दबा नहीं सकता, उसी तरह हर टेढ़े-मेढ़े हालात में ढलकर अपने में दोष नहीं आने देना चाहिए।
6. चन्द्रमा – आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे कला के घटने-बढ़ने से चंद्रमा की चमक व शीतलता वही रहती है।
7. समुद्र – जीवन के उतार-चढ़ाव में खुश व संजीदा रहें। यानी प्रसन्न और गंभीर रहे।
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