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एक पुरुष ने जाने कितने महानरों को निगल लिया|
कभी सत्य पर चला नहीं जो सत्याग्रह का नाम लिया||
अब बसंत के गीत सुनाना पौरुष को मंजूर नहीं|
माँगे सुनी हुई हाय, अब इज्जत है सिन्दूर नहीं||
श्रृंगार आज अस्पृश्य हुआ, नंगापन पूजा जाता है|
सौ सौ मछली खाकर बगुला, बगुला भगत कहाता है||
कोई कहता ओसामा जी और कोई ओबामा जी|
लोकतंत्र के बाजारों में बिकती है सब्जी भाजी||
आतंकी का चारण बनकर राजनीती नतमस्तक है|
कालनेमि के हांथो में भगवद्गीता की पुस्तक है||
रामचरितमानस को जो पानी पी पी गरियाता है|
इंटेलेक्चुअल उम्दा सबसे भारत में कहलाता है||
यहाँ खून सस्ता बिकता, आँखों का कोई मोल नहीं|
उनको ही पूजा जाता है जिनका कोई रोल नहीं||
कुछ अध्यात्मिक शब्दों को जागीर बना कर बैठे हैं|
सत्य, अहिंसा सोने की जंजीर बना कर बैठे हैं||
उलटी सीधी परिभाषा गढ़ने वाला यह खादी है|
प्रश्नचिंह पर प्रश्न उठता हूँ बोलो आजादी है?
क्यों गाँधी का ग्रहण लगा है नेताजी के सपनों में?
सावरकर, आजाद, तिलक और मालवीय से अपनों में||
सूत कातने से शोषण से मुक्ति नहीं मिल सकती है|
भ्रामक प्रचार करने वालों यूँ नहीं दासता मिटती है||
यूँ ही अनुनय करने से, हाँ, कोई अधिकार नहीं देता|
फूल नहीं देता है जो सुन लो तलवार नहीं देता||
सावरकर, नेताजी जैसों ने जब खून बहाया है|
महाकाल के जबड़े से फलरूप आजादी पाया है||
और उसका सौदा करने वालों ने उसको काट दिया|
हाय हमारी भारत माता टुकड़े टुकड़े बाँट दिया||
हर टुकड़े पर अलग अलग टुकड़े की मांग उठाते हैं|
खंडित, खंड खंड करते हम खुद से बटते जाते हैं||
गैर कोई आता भारत का अधिनायक बन जाता है|
जन गण मन अधिनायक कह कर भारत शीश झुकता है||
पोप मरे तो मरे हमारा परचम क्यों झुक जाता है?
एक विदेशी के मरने पर भारत शोक मनाता है||
क्यों अब भी भारत माता भारत में क्रंदन करती हैं?
एक भिखारिन बनी हुई सबका अभिनन्दन करती हैं||
चीन सुरक्षा परिषद में हमको आँखे दिखलाता है|
ताल ठोंक कर पाक हमारी सीमा में घुस आता है||
कुछ आतंकी संप्रभुता को चिंदी चिंदी कर देते|
हम दानवी हितों की खातिर उनकी अगवानी करते||
क्यों प्रत्यर्पण पर एक छोटा देश हमें उलझाता है?
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