मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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जागरण के गीत लिखता थक चुका हूँ।
वृद्ध है भारत, जवानी खो गई है।
आज भ्रष्टाचार पथ पर चल पड़ा है –
जो हमारे आस्था का केंन्द्र था॥
जो कमल बन पंक मेँ खिलने लगा था।
महज वह जलकुंभ था, भ्रम था हृदय का।
राष्ट्र पथ पर क्रांति के, राष्ट्रीयता के –
गीत गाता कपट, मायिक दनुज मन का॥
आज म्लेच्छोँ की जुटा कर टोलियाँ,
धर्मसंसद मेँ नये प्रस्ताव पारित कर रहा है।
खुल गया विपणन पटल माँ भारती का,
आँसुओँ को रक्त खारिज कर रहा है॥
छंद के अनुशासनोँ मेँ बँध कहाँ से –
हृदय मेँ सुन्दर, सुसंगत भाव लाऊँ।
मिट गई हो चेतना ही जब हृदय से –
कहाँ से कविता बनाऊँ, जागरण के गीत गाऊँ?
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