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अतुल्य भारत

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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भ्रष्ट व्यवस्था का परिचायक।
कहाँ है जन-गण-मन अधिनायक?
किसके शुभ नामे हम जागे?
किसका शुभाशीष हम माँगे?
कौन हमारे मन को दुःख देकर हर्षाता?
कहाँ छुपा है? सम्मुख लाओ, भारत भाग्य विधाता।
जिसने अपने खून से सीँचा
आज भी उसका हाँथ है रीता।
जिसने दी झूठी आशाएँ,
उसकी चारोँ ओर सदाएँ।
आरक्षण ने चली चाल है।
तुष्टीकरण का मकड़जाल है।
आजादी मेँ आजादी की माँग पत्थरोँ ने माँगी है।
जिसने सच बतलाना चाहा वह दोषी है, वह बागी है।
एक राहु ने नेताजी को और केतु ने तिलक ग्रसा है।
कालसर्प का दुःसह जबड़ा, पूरा हिन्दुस्थान फँसा है।
एक मराठी ने ललकारा
और बिहारी ने फटकारा।
इसमेँ कहाँ है हिन्दुस्थान?
बतलाओ तो मेरी जान।
क्रान्तिधर्मियोँ को पागल कह जिसने सदा पुकारा।
आहुति देने वालोँ को जमकर कोसा,फटकारा।
आज वही हो गया हाय जन-गण अधिनायक।
राजनीति का खलनायक बन चुका है नायक।
इसीलिये तो औरोँ से हटकर अतुल्य।
भारत है बेमोल आज सच मेँ अमूल्य।

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