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नज़्म

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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सरे महफिल कहूँगा तो मुहब्बत मेँ खता होगी।

तुझे अपनोँ से नफरत है तो गैरोँ से वफा होगी।

वो हमसाया है रहता साथ मेरे पासवाँ बनकर।

तुझे उससे अदावत है तो मुझसे भी जफा होगी।

ये मेरे अश्क हैँ मैने करीने से सँवारा है।

कि आशिक मेरे जैसो की ये यूनानी दवा होगी।

बयाँ करता हूँ जब दिल से मैँ तेरी बेवफाई को।

बयाँ इस बात का होता नहीँ तू बेवफा होगी।

मयंक को पूजती है और पत्थर मारती दुनियाँ।

ये दुनियाँ मनचली है इश्क देगी और खफा होगी।

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