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लोकतंत्र की समाजवादी लाठी

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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वंदे मातरम,इन्कलाब जिंदाबाद,भारत माता की जय कुछ लोगों को रास नहीं आते और हमारी टोली शिक्षकों की टोली होने के नाते इन राष्ट्रवादी मन्त्रों का भी उच्चारण कर रही थी|शासन और प्रशासन से मानमनौव्वल का क्रम बदस्तूर जारी था|अचानक हजरतगंज चौराहा उस अमानवीय और नृशंस घटना का साक्षी बना जिसे देख कर इंसान तो इंसान शैतान की भी रूह काँप जाय|वहाँ उपस्थित पुलिस वालों ने बिना कोई पूर्व सूचना दिए पानी के फव्वारे छोड़े और तब तक लाठियां बरसाते रहें जब तक अभ्यर्थियों को घटना स्थल से डेढ़ किलोमीटर दूर तक खदेड़ नहीं दिया|पहली बार मुझे ज्ञात हुआ की पानी से भी घातक श्रेणी की चोट लगा करती है|अभ्यर्थियों को बर्बर तरीके से ढूढ़ ढूढ़ कर पीटा गया,यहाँ तक की जूलूस में आगे चल रही महिला अभ्यर्थियों को भी नहीं बख्शा गया और उन्हें महिला पुलिसकर्मियों के स्थान पर पुरुष पुलिसकर्मियों ने दौड़ा दौड़ा कर मारा|सभ्यता को लज्जित करते हुए महिलाओं के सामने ही महिला और पुरुष दोनों ही अभ्यर्थियों को महिलाओं को लजाने वाली गालियों से नवाजा गया|जिस देश में शिक्षकों को खुलेआम सड़क पर खदेड कर मारा जाता हो उस देश में आप कितने भी सर्व शिक्षा अभियान क्यों न चला लें,सम्पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को कभी भी हासिल नहीं किया जा सकता|क्या यह उस देश की झांकी है जिसे कभी विश्वगुरु कहा जाता था और क्या यह उस सूबे की शासन व्यवस्था है जो भारत का सर्वाधिक जनसँख्या वाला राज्य होने के साथ ही सदा से ही भारतीय राजनीति के केन्द्र में रहा है?

मैंने भी खायी है पुलिस की लाठी
मैंने भी खायी है पुलिस की लाठी

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