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सावधान अब मृत्यु निकट है

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

मंदिर जैसे श्राप हो गया,

ध्वज फहराना पाप हो गया |

” हर  एक हिंदू आतंकी है ”

यह  नारायण जाप  हो गया |
आरक्षण की लौह श्रृंखला में बंदी संगम का तट है |

फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

जिसने रक्त पिलाकर पाला,

देह जलाकर किया उजाला |

इंद्रप्रस्थ के सिंहासन ने

उसपर आज हलाहल डाला |

सीमा के इस ओर प्रलय को आमंत्रण गुपचुप, खटपट है|

फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

सूरज की किरणों को गाली,

ग्रसने को आतुर है लाली

राहू केतु ने मुंह फैलाया

संग शक्तियां काली काली|

रोज नया नाटक रचता है, यह कैसा मायावी नट है ?

फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

जमी हुई है तट पर काई,

तलछट में फैली चिकनाई|

हुआ प्रदूषित पूर्ण सरोवर,

पुण्य माघ की बेला आई |
चाहे जितना गंदला हो जल, डुबकी को आतुर जमघट है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

जनहठ पर नृपहठ है भारी,

निर्वाचित होते व्यापारी |

हुई निरर्थक राष्ट्र चेतना,

भूखी, नंगी जनता सारी |
पापगान में गम कान्हा का सामगान और वंशीवट है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

जिसने कूल्हों को मटकाया |

कोटि कोटि पण उसने पाया |

वही राजनेता है भारी –

जिसने जनता को भटकाया |

इसे हिला भी नहीं सकेंगे, जमा हुआ अंगद का पग है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |

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