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हे सरहद पर रहने वाले

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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हे सरहद पर रहने वाले।
सर्दी – गर्मी सहने वाले।
वंदनीय तेरे चरणोँ को चूम, धरा पावन हो जाती।
दर्शनीय तेरा मुख – मण्डल, पर, अरि को गश्ती आ जाती।
अपने सब सपने ठुकरा कर, भारत माँ की लाज बचाने।
अधिकारोँ की छोड़ पैरवी, वीर चला कर्तव्य निभाने।
पैरोँ मेँ पड़ जाये छाले।
फिर भी तू बंदूक सँभाले।
हे सरहद पर रहने वाले।
सर्दी – गर्मी सहने वाले।

शेष बाद मेँ, प्रतिक्रियाओँ का धन्यवाद।क्षमा करेँ मैँ प्रतिक्रियाओँ का उत्तर देने मेँ असमर्थ हूँ

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