मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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जब उघाड़ी जा रही हो –
नारियोँ की अस्मिता
तो शांत बैठे?शांत बैठे?
भारती हिरणी बनी –
चिल्ला रही हो –
व्याघ्र से भयभीत होकर।
आर्यसुत तूणीर दाहक
प्रलय उर्जा से भरा हो।
रुक सकेगा? थम सकेगा?
राष्ट्र के सम्पूर्ण वस्त्रोँ की
चलो होली जला देँ,
यदि नहीँ हम ढँक सकेँ
तन
द्रौपदी का, द्रौपदी का।
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