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जय जवान, जय किसान

Social issues
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“जय जवान जय किसान” का नारा देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी ने सन 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध के दौरान दिया था I उस समय हमारा देश अपनी जनता के पेट को भरने के लिए अमेरिका से गेंहू खरीदता था और युद्ध रोकने के लिए दवाब बनाने के वास्ते अमेरिका ने गेंहू की सप्लाई बंद कर दी थी I उस कठिन समय पर देश के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवानों के साथ साथ किसानों का भी आहवान किया था I उचित है कि यदि सीमा की रक्षा हेतु जवान अपना खून बहाता हैं तो किसान देश का पेट भरने के लिए खेतों में खून पसीना एक करता है I दोनों ही राष्ट्र भक्त/देश भक्त हैं I देश के लिए शर्म की बात है कि पिछले कुछ समय से किसान आत्महत्या कर रहा था और अब एक भूतपूर्व सैनिक ने भी आत्महत्या कर ली I इससे भी बड़ी दुखदायी बात कि प्रश्नों के घेरे में खड़े राजनेता जो अब तक किसानों की ख़ुदकुशी पर राजनीती करते थे आज एक सैनिक की आत्महत्या पर राजनीती कर रहे हैं I सीमा पर शहीद हुए जवान को लेकर भी राजनीति करते हैं I सबसे बड़ी विडंबना है कि सीमा पर जान देने वाले सिपाही के लिए सरकार अपने खजाने का मुंह खोल देती है उसका मरणोपरांत सम्मान करती है और वहीँ भूतपूर्व सैनिकों को अपने जीवन निर्वाह के लिए आन्दोलन करना पड़ता है और अपनी मांग को जायज करार देते हुए कोई एक आत्महत्या भी कर लेता है I राजनेताओं की राजनीति के चलते आत्महत्या कोई घाटे का सौदा साबित नहीं होना चाहिए I कुछ धन और किसी एक पारवारिक सदस्य को नौकरी तो मिल ही जाएगी और राजनेताओं को भूतपूर्व सैनिकों के समर्थन में खड़े होकर अपनी राजनीति चमकाने का मौका I आत्म हत्या करने का सही कारण विवेचना के गर्त में दबा रहेगा I सत्ताधारी दल आत्महत्या के भिन्न भिन्न कारण गिनाता रहेगा और विरोधीदलों को गिद्ध की उपाधि देते हुए राजनीति करने के लिए आरोपित करता रहेगा I राजनेता चाहें सत्तादल में हों या विपक्ष में उनके लिए मौत एक राजनीती करने का सुलभ साधन है जिसका उपयोग करना वो कैसे भूल सकते हैं तभी तो दुर्घटना, भगदड़ आदि में भी होने वाली मौतों पर सरकारी खजानों के मुंह खुल जाते हैं और विपक्षी दल यह समझाने में जुट जाते हैं कि हम तुम्हारे सबसे बड़े हितैषी हैं I
उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव सामने हैं और इन चुनावों के दो साल बाद 2019 में लोकसभा के चुनाव हैं और यह माना जाता है कि दिल्ली जाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है इसीलिए भाजापा सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाने के प्रयास में लिप्त है और उसके प्रयासों को धक्का पंहुचाने के लिए ओ आर ओ पी का मुद्दा विरोधी दलों का एक सफल प्रयास हो सकता है कारण माननीय प्रधानमंत्री महोदय कह चुके हैं कि वन रैंक वन पेंशन लागू कर दी गयी है लेकिन पिछले 507 दिनों से वन रैंक वन पेंशन के लिए पूर्वसैनिक आंदोलित हैं तथा यह चर्चित है कि रक्षा मंत्री के मिलने से इनकार करने पर ही पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल ने ख़ुदकुशी की है I पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल रक्षामंत्री से क्यों मिलना चाहता था यह तो विवाद का विषय है लेकिन “रक्षामंत्री के न मिलने के कारण ख़ुदकुशी” ने बना दिया राजनैतिक मुद्दा I
उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए सभी राजनैतिक दल जुगाड़ बिठाने में संलिप्त हैं I जहां राष्ट्रीय दल भाजापा “कांग्रेस,बसपा और सपा” के असंतुष्ट नेताओं का खुले दिल से स्वागत कर रही है वहीं बसपा, सपा के अन्दर मचे घमासान का लाभ उठाने के लिए मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए जुटी हुयी है जिससे घबराकर सपा प्रमुख माननीय मुलायम सिंह ने अपने नेताओं को डांटते हुए यहां तक कह दिया कि इस उठापटक से बसपा का फायदा होगा I वहीँ भाजापा में टिकट वितरण में हो रही देरी से टिकट की उम्मीद लगाये नेता लोग निराश होने लगे हैं क्योंकि टिकट वितरण से पहले सपा में मचे घमासान की धार देखने के साथ साथ वो उनके द्वारा घोषित प्रत्याशी के मुकाबले खड़ा करने के लिए कम से कम बराबर का प्रत्याशी चुनावी जंग में उतारने की सोच रखते हैं I कांग्रेस तो वैसे ही आई सी यू में है फिर भी सपा से गठबंधन के लिए प्रयासरत है I सपा के भीतर मची जंग व मुलायम सिंह के गठबंधन करने के प्रयासों का प्रभाव सूबे के चुनाव पर क्या होगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन यह केवल संयोग नहीं हो सकता कि देश की तकरीबन हर पार्टी के अन्दर “राजनीती में आकंठ डूबे नेताओं में” असंतोष व्यापत है कहने का मतलब केवल इतना कि जहां विदेशों में भारत को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है उसी भारत के राजनैतिक दलों में लोकतंत्र गायब है इसीलिए नेता अपनी बात को जोरदारी से अपने दल में कहने के स्थान पर दल परिवर्तन करते हैं व इसके साथ साथ दल बदलू नेता अपनी खामियों को भी जनता से छिपाते हैं I राजनीति में भ्रष्टतंत्र का भी बोलवाला है I अपराध जगत भी चरम पर है I देश की राजनीति पर बहुत से प्रश्न हैं जिनका जवाब जनता, मतदाता को राजनेताओं से मांगना होगा I
भारत का मतदाता स्वभाव से राजनैतिक नहीं है और सामान्य मतदाता किसी भी दल का प्रतिबद्ध मतदाता नहीं होता वह चुनाव से कुछ समय पहले निर्णय लेता है I आपस में भी बात करते समय वह गोस्वामी तुलसीदास की लिखी पंक्ति सुना देता है कि “कोई नृप होए हमें का हानि, चेरी छोड़ न होएबे रानी“ इसी मानसिकता के चलते विशेष परिस्थितियों का लाभ उठाने से वह भी नहीं चूक रहा है I जय जवान, जय किसान का नारा बदल कर माननीय मोदी जी ने जय जवान , जय किसान , जय विज्ञान का नारा दिया था I मतदाता जानता है कि चाहें मरे जवान , मरे किसान या फिर मरे इंसान सत्ता लोलुप नेता केवल राजनैतिक लाभ ही देखते हैं इसीलिए गरीब व मध्यम वर्गीय जनमानस की सोच यह है कि सत्ता में कोई भी हो उसपर विशेष अंतर नहीं आएगा I सरकारी सुविधा प्राप्त करने के लिए सरकारी दलालों का हाथ थामना ही पड़ेगा I
जय जवान ,जय किसान I

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