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सत्ता के लिए कुछ भी करेगा

Social issues
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.उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव -2017 में सूबे की सत्ता हथियाने के लिए राजनैतिक दल जोर शोर से जुट गए हैं I तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के साथ साथ भारतीय सेना के द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में किये गए सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों को भुनाने में सभी राजनैतिक दल अपने अपने हिसाब से जुटे हुए हैं I सबसे अधिक आश्चर्य यह पढ़कर हुआ कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय सेना के द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में किये गए सर्जिकल स्ट्राइक की तुलना इजराइल की सैन्य कार्यवाइयों से कर डाली I विदित हो कि सन 1948 में इजराइल का उदय हुआ था और तब से उसके द्वारा की गयी सैन्य कारवाइयों की एक बहुत बड़ी श्रंखला है जिसमें 7 बड़े घोषित युद्ध भी शामिल हैं I मतदाता को यह जानना आवश्यक है कि माननीय मोदीजी ने किस क्रम पर अंकित सैन्य कार्यवाई से तुलना की है I समझदार व् जागरूक नागरिक की हैसियत से मैं यह मानता हूँ कि माननीय मोदी जी देश को इजराइल की तरह युद्ध की विभीषका में कभी नहीं झोंकेंगे और भारत की सेना के शौर्य पर किसी भी देशवासी को शक नहीं है लेकिन सत्ता हथियाने के लिए सेना का राजनैतिक प्रयोग निंदनीय है I
नारी शशक्तिकरण की चर्चा करें तो नारी पहले नारी है बाद में उसका धर्म जाति और समुदाय आदि आते हैं लेकिन चाहें धर्म के ठेकेदार हों और चाहें राजनीतिज्ञ हों उसका प्रयोग हर हाल में अपना हित साधने के लिए कर ही लेते हैं I यह बात बिलकुल सही है कि तलाक के बाद महिला सामजिक व् आर्थिक स्तर पर समाज में अपना स्थान खो देती है I महिला को समाज में उच्च स्थान दिलाने पर चर्चा वांछनीय है न कि कानून बनाने और बदलने पर I अगर पुरुष में उसका पुरषोचित अहम चरम पर है तो चाहें तीन तलाक बोल कर या चाहें कोर्ट में मुकदमा दायर कर तलाक ले ही लेगा और अगर किसी नियम के तहत तलाक नहीं हुआ तो वोह महिला का जीवन नरक बनाये रखने में सक्षम है जिसमें घर की अन्य महिलाओं का सहयोग भी उसे हासिल होता हैI आजकल समाज में तलाक के मामले दिनों दिन बढ़ रहे हैं और अगर आंकड़ों पर विश्वास करें तो मध्यम वर्गीय परिवारों के पढ़े लिखे युवक और युवती तलाक के लिए न्यायालय की शरण ले रहे हैं I कानून परिवर्तन से महिलाओं की आर्थिक व् सामाजिक स्थित में बदलाव नहीं आ सकता है बल्कि समाज को शिक्षित करना आवश्यक हैI समान नागरिक संहिता को “दलितों, ईसाईयों व् मुस्लिमों के खिलाफ” जैसा मुद्दा उछल रहा है जबकि इस मुद्दे पर बहस करने वाले लोग समान नागरिक संहिता की बारीकियों से अपरचित होंगे I तीन तलाक मुद्दे पर भाजपा व् विपक्ष में जुबानी जंग छिड़ी हुयी है I यह सब बहसें सत्ता हथियाने के लिए हो रही हैं I क्या कोई भी राजनैतिक दल सामाजिक अव्यवस्थाओं को ख़त्म करने के लिए उद्धत है? सोशल मीडिया पर बहस में जुटे राजनैतिक दलों के अनुयायिओं से पहला सवाल कि जितनी शिद्दत से वह अपने द्वारा समर्थित दलों के पक्ष में बहस करते हैं क्या उन सब बातों को अपने ऊपर भी लागू करते हैं I मेरे अनुभव से प्राप्त जवाब है नहीं I जब बात स्वयं पर आती है तो तुरत मुखौटा बदल लेते हैं I सोचिये क्या धर्म, जाति आधारित मुद्दों पर बहस करने वाले लोगों के बच्चों ने अंतरजातीय या अन्य धर्म के युवक युवतियों से विवाह नहीं किये हैं ?या फिर विदेश में जाकर पोर्क या बीफ नहीं खाया है I जब यह सवाल उठाया जाता है तो जवाब मिलता है कि बच्चों पर कुछ थोप नहीं सकते I
धम्म यात्रा के दौरान अभी कुछ समय पहले ही संकिसा (बौद्ध अनुआयियों का तीर्थ स्थल ) में 400 हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन किया I इस धम्म यात्रा में कई भाजपा के नेताओं के साथ साथ अन्य दलों के राजनेता भी शामिल थे परन्तु किसी ने भी इस धर्म परिवर्तन को मुद्दा नहीं बनाया I यही ईसाई या मुसलिम धर्म को अपनाया गया होता तो देश में हाहाकार मच रहा होता I यह है राजनेताओं का दोहरा आचरण I ज्ञातव्य हो कि इस समय बौद्ध धर्म के मानने वालों का एक बहुत बड़ा वोट बैंक है I डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने तो पहले ही हिन्दू धर्म को तमाम जातियों, पंथों , व् सम्प्रदायों का मिश्रण बताते हुए किसी भी अन्य धर्म के अनुआयायी के लिए हिन्दू धर्म में स्थान को नकारा है और उन्होंने स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था I इस समय वोट के लिए डॉ भीमराव अम्बेडकर का नाम हर राजनैतिक दल अपने अपने हिसाब से भुनाने की जुगाड़ में लगा हुआ है I
“जनप्रतिनिधत्व कानून की धारा 123 (3) कहती है कि अगर कोई उम्मीदवार धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के नाम पर किसी को मत देने के लिए कहता है या मत देने से रोकता है तो इसे चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाना माना जायेगा I इसी तरह धारा 123 (3A) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति चुनाव के दौरान धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के नाम पर लोगों की भावनाएं भड़काता है तो उसे भी भ्रष्ट तरीका माना जायेगा I” कानून बना कर या बदलकर समस्याओं का समाधान सोचने वाले लोग तो खुद जनप्रतिनिधत्व कानून की बारीकियों से लाभान्वित होते रहते हैं I जैसे हिन्दू उम्मीदवार के पक्ष में मुस्लिम धर्मगुरु अपने मुस्लिम धर्म के मानने वालों से धर्म के आधार पर मतदान की अपील करता है तो क्या यह भी भ्रष्ट तरीका होगा I इसी तरह से पिछड़े वर्ग का उम्मीदवार दलित वोट पाने के लिए दलितों से दलित नेता का हवाला देकर मतदान की अपील करता है तो यह भी भ्रष्ट तरीका होगा I कहने का तात्पर्य केवल इतना कि हर राजनैतिक दल से सम्बंधित राजनेता मतदान की अपील को जनप्रतिनिधत्व कानून के अनुसार ढाल सकता है तो फिर सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाने के लिए बनाये जाने वाले कानून अपने मुताबिक क्यों नहीं ढाले जा सकते I
जागरूक मतदाताओं से अपील है कि इन चुनावी बहसों से प्रभावित हुए बिना स्वयं के विवेकानुसार निर्णय लेकर मतदान करें I मतदान अवश्य करें I

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