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कोरोना जनित लॉक डाउन से भी काफी पहले की बात है। पारिवारिक डिनर से लौटते समय बीवी ही नहीं बच्चों के भी चेहरे पर एक अजीब सी नाराज़गी थी। गाड़ी चलाते समय हम सोचने लगे कि आखिर आज कहाँ चूक हो गई हमसे। छुरी कांटे भी हमने सही हाथों में पकड़े थे, नैपकिन और कपड़ों पर कुछ गिराया भी नही, टेबल पर कोहनी भी नही रखी, चप चप की आवाज़ किये बिना मुँह बंद कर के खाया। खाते समय ठहाके भी नही लगाए। मतलब, हर वो चीज़ करी, जो किसी भी अच्छे खाने को बेस्वाद बना देती है। खाने के बाद फिंगर बोल का भी सही इस्तेमाल किया था। पीने के पानी में सलाद वाला नींबू भी निचोड़ कर नही पिया ।फिर कौन सा अनर्थ हो गया कि सबके चेहरे सूजे हुए हैं ।
घर पहुंच कर हमने कुरेदा कि हमसे कौन सी गुस्ताखी हो गयी रेस्टोरेंट (Restaurant) में कि सब नाराज़ से दिख रहे हैं । बिटिया बोली कि ..पापा, पहले तो ये रेस्टोरेंट बोलने की आदत छोड़िए, कितनी बार बताया है कि रेस्ट्रॉन्ट बोला जाता है । हमने अपनी गलती तुरंत स्वीकार ली ,कि मामला रफ दफा हो और सबका मूड ठीक हो जाये।कोई और दिन होता तो हम ये कुतर्क जरूर करते कि क्या रेस्ट्रॉन्ट का खाना रेस्टोरेंट से ज़्यादा स्वादिष्ट होता है या फिर रेस्ट्रॉन्ट बोलने पर कम बिल देना पड़ता है।क्योंकि बात अभी खत्म नही हुई थी,असली बात अभी बाकी थी इसलिए हम मौनी बाबा बन के शून्य में ताकने लगे।
इसके बाद बेटे ने कमान संभाली ..इन्ही सब से तो बेइज्जती करा देते हैं पापा सबके सामने ,सब लोग हमें ही घूर रहे थे कि कहाँ के गंवार हैं … !!
सारा घटना क्रम हमारी आंखों के आगे घूम गया।दरसल हमे सिरके वाली प्याज़ बहुत पसंद है, तो हमने पास जाते हुए वेटर से ज़रा जोर से कह दिया कि थोड़ी विनेगर वाली ओनियन लाना।हमारे बच्चों सहित कई अन्य लोगों ने हमे घूर कर देखा।हम समझे थे शायद हमारी आवाज़ कुछ तेज थी जिससे सब हमे घूर रहे हैं लेकिन अब हमें समझ आया कि हमने अनियन को ओनियन कहने की महा धृष्टता कर दी थी जो संभ्रांत लोगों के लिए पाप और गहन अपराध की श्रेणी में आता है।
अगली गलती हमने टमाटर की सॉस मांग कर कर दी थी जिसे पढ़ा लिखा वर्ग आजकल टमैटो केचप के नाम से पुकारता है । इन दो बड़ी गलतियों के लिए हमने तुरंत सबसे बिना शर्त माफ़ी मांगी और आगे से कभी ऐसी गलती न करने का वादा किया। हमने मन में संकल्प लिया कि आज से ही अनियन और टमैटो केचअप खाना बंद।पता नही कब,क्यों और कहां फिर से उच्चारण का गणित गलत हो जाये और परिजनों के कोप का भाजन बनना पड़े। ज़िंदगी इन चीजों को खाये बिना भी गुलज़ार रह सकती है।
बहुत साल पहले की बात है,हमारे जीवन की पहली विदेश यात्रा थी। जिगरी दोस्तों की फ़रमाइश थी कि लौटते समय ड्यूटी फ्री से एक बोतल शैम्पेन अवश्य लाई जाए।
दोस्तो के आदेशानुसार लौटते समय हम एयरपोर्ट की सबसे बड़ी ड्यूटी फ्री शॉप पर शैम्पेन लेने पहुंच गए। पूरी शॉप छान मारी पर शैम्पेन कहीं नही दिखी।हमने डरते डरते काउंटर पर पूछा कि शैम्पेन कहाँ रखी है।उसने इशारा कर के बता दिया।वहां हम पहले ही दो चक्कर लगा चुके थे।फिर भी वहां पहुंच कर हमने ढूंढा तो शैम्पेन हमे फिर नही दिखी।आखिर काउंटर छोड़ कर वो बंदा हमारे पासआया और शैम्पेन दिखाई।दरसल उस पर Champagne लिखा था जिसे हम बार बार ‘चम्पागनी’ पढ़ कर आगे बढ़ जाते थे।इंटरनेट का जमाना तो था नहीं कि सर्च कर ली सही चीज़…
ये फ्रेंच भाषा तो अंग्रेज़ी से भी कहीं आगे है । फ्रेंच में जो लिखते हैं वो पढ़ते नहीं,जो पढ़ते हैं वो बोलते नहीं, जो बोलते है वो समझ नहीं आता। हम तो आज तक Chanel परफ्यूम को चैनल ही कहते है,अब फ्रेंच लोग हमारे ‘शनेल’ न बोलने से बुरा मानें तो हमारी बला से।कौन सा हमे पेरिस में अपार्टमेंट गिफ्ट कर रहे हैं वो। हम Gucci को गुक्की कहें तो इटालियन को बुरा नही मानना चाहिए कि हमने ‘गूची’ क्यों नहीं बोला। लिखो तुम कुछ भी और गंवार हम ठहरे।ऐसा नही चलेगा।एक और ब्रांड है Louis Vuitton।अब आप इसे लुईस विटोन ही तो पढ़ेंगे न। अपनी हंसी उड़वानी है तो ज़रूर पढ़िए क्योंकि संभ्रांत लोग इसे लुई वतां कहते हैं।
वास्तव में ये वतां है, वितों है या फिर विटों है या कुछ और है …इसके बारे में शायद Louis Vuitton वाले भी न बता पाएं। इस टॉप ब्रांड के एक सबसे साधारण बैग की कीमत है लगभग ढाई लाख रुपये और साइज इतना कि 5 किलो आलू और एक फूलगोभी न समा पाए इसके अंदर ।आलू की वर्तमान कीमत 20 रुपये प्रति एक किलो भी लगा लें तो इस LV के झोले की कीमत में साढ़े बारह टन आलू आ जाये। इससे अच्छा झोला तो हमारा दर्जी हमारी पुरानी पैंट को काट कर बना देता था। इससे ज्यादा मजबूत भी।हम कहते तो वो इस पर LV का logo भी काढ़ देता। यू .पी. वालों का, हिसाब किताब समझाने का यही तरीका होता है,अंग्रेज़,इतालवी या फ्रांसीसी बुरा माने या भला।
वैश्विक संकट,महामारी या भुखमरी के समय पाँच किलो आलू की कीमत ऐसे बैगों से ज्यादा होती जाती है और वही एक एकलौता समय होता है जब पांच किलो आलू उगाने वाला, इन बैग बनाने वालों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है । द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ऐसा ही हुआ था। अंग्रेज़ी शब्द भी उच्चारणों को फैशन के अनुसार बदलते रहते हैं । शेड्यूल (Schedule) से स्केज्यूल, गेस्चर ( Gesture) से जेस्चर और सिचुएशन (Situation) ने कब सिटुएशन का जामा पहना लिया, पता ही नही चला। सबसे बड़ा धोखा तो एनट्रप्रेन्योर (entrepreneur) ने दिया, ये कब धर्मपरिवर्तन कर ऑनटोप्रेंनहो हो गया कोई समझ ही न पाया। जो लोग पुराने उच्चारणों से चिपके हुए हैं उन्हें गंवार समझा जाता है आजकल।
हमारे हम उम्रों या उनसे भी पहले और बाद की पीढ़ी को अंग्रेज़ी सीखने की बेस्टसेलर किताब रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स याद होगी।जिसका प्रचार प्रसार हम सब के प्रिय क्रिकेटर कपिल देव किया करते थे।कहते हैं कि भारतीय टीम का कप्तान बनने के बाद,मैच जीतने के बाद,अंग्रेज़ी में कप्तानी इंटरव्यू देने में इस किताब ने काफी सहयोग दिया था। ये भी कहा जाता है कि पाकिस्तानी टीम बेहतर होने के बावजूद मैच हारने को प्राथमिकता देती थी क्योंकि मैच जीतने पर,इंटरव्यू देते हुए,उनके कप्तान पंजाबी उर्दू मिश्रित अंग्रेज़ी बोलते समय काफी हास्यास्पद हो जाते थे । तो साहब,अंग्रेज़ी के आतंकवाद से तो पाकिस्तानियों के हौसले भी पस्त थे।
पहले रोडवेज़ की बसों में भी अंग्रेज़ी सीखने की सस्ती किताबें खूब बिकती थी।किताबे बेचने वाले अपनी लच्छेदार भाषा में हिंदी भाषियों की अंग्रेज़ी तंगहाली को खूब भुनाते थे। मेरे एक ठेठ हिंदीभाषी प्रबुद्ध मित्र की वर्तमान में धाराप्रवाह अंग्रेज़ी, ऐसी ही बस यात्राओं में किताबें बेचने वाले के यादगार कवित्तपूर्ण तरीके पर आधारित है… बानगी देखिए
“Pigeon कबूतर,उड़न Fly ,
Look देखो, आसमान Sky । ”
सारी बस की सवारियों को अंग्रेजी के उच्चारण से लेकर,शब्दार्थ तक सब समझ में आ जाते थे और उसकी सारी किताबें हाथों हाथ बिक जाती थी।
वर्तमान में हम और हमारी अगली पीढ़ी, हिंदी या अपनी मातृभाषा के शब्दों को गलत उच्चारित करने में शर्म नही बल्कि गर्व महसूस करते हैं। बस अंग्रेज़ी का pronunciation गलत नहीं होना चाहिए। मातृभाषा के अलावा किसी अन्य भाषा को जानना बहुत ही अच्छा है,लेकिन मातृभाषा की उपेक्षा वास्तव शर्म की बात है।
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाएं बहुत समृद्ध हैं क्योंकि ज़्यादातर का संबंध देवभाषा संस्कृत से है।हमारी भाषाओं की विशेषता ये है कि जो लिखा जाता है,वही पढ़ा जाता है,वही उच्चारित होता है और वही समझा जाता है।विश्व की कम भाषाएं ही इतनी समृद्धशाली हैं।हमे गर्व है अपनी भारतीय भाषाओं पर और उनके समृद्धशाली शब्दकोशों पर ।
लॉक डाउन में आप और आपका परिवार ,किसी भी भाषा का अच्छा साहित्य पढ़ कर और भी समृद्ध हों।
आपके और आपके परिवार के उत्तम स्वास्थ्य व बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाओं सहित ..
….अतुल
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।
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