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सैकड़ों मक्खियाँ-मच्छर मुंह की सैर कर सुरक्षित बापस निकल आते है…………….. तो पहले तो मुल्ला ने एक हज़ार गालियाँ बन्दुक की गोली की मानिंद निकाली,मैना पूछा किसकी मां-बहन एक कर रहे हो,मुल्ला बोले उससे क्या मतलव……गाली तो गाली है….देना थीं तो दे डाली……..अब किसी का नाम लेकर दीं,तो क्या बची हुई पसलियाँ भी तुड़वाने का इरादा है………….
कमबख्त इस “प्याज” डायन को कोस रहा हूँ,जो ऊपर चडी तो नीचे उतरने का नाम नी ले रई है,कमबख्त कुलांचें भर-भर और ऊपर चढ़ जा रई है……………कमबख्त स्टेटस सिम्बल बन ती जा रई है,जब गरीबों के पास थीं,तो “मुन्नी बदनाम” थी,जिधर देखो गरीबों की प्याज रोटी ….प्याज रोटी….गरीब एवं .दो जून की रोटी और धोती ……गरीबों के हाथ से छिनी नहीं,कि धोती भी लाल बत्ती में और प्याज भी एरोप्लेन में. मैंने देखा है,अब प्याज स्टेटस सिम्बल बन गयी है,लोग शो-पीस और एंटिक पीस की जगन शोकेस में प्याज सजा रहे हैं,जिसके शोकेस में जितनी प्याज ……………. समाज में उसकी उतनी औकात…….मुआ हमारे पास तो एक गंठी भी नहीं है प्याज की……ये गुलबदन तो मेरी इज्ज़त के पीछे पड़ी है,चिंता ही नहीं……….एक महिना पहले एक किलो प्याज लाया था,कमबख्त सलाद बना-बनाकर चाट कर गयी,कहती है मै तो प्याज रोटी खाकर गुज़ारा कर रही हूँ……अरी कमबख्त मुर्गा खाती,प्याज खाने को कहता कौन है,कौन माई का लाल है,जो इस ज़माने में अपनी बीबी को प्याज खिला सके ,मै ही एक जिगरे वाला हूँ,जो बीबी को प्याज खिलाकर भी जिंदा है,ऐरा-गैर होता तो हार्ट-अटैक में मर जाता , तो ये दिन क्यों देखने पड़ते,आज मेरे भी शोकेस में “एक किलो प्याज” सजकर मोहल्ले में शान बड़ा रही होती. और वो नुक्कड़ वाले मिश्रा जी हैं,अजीब अहमक आदमी हैं, चोरों के डर से घर में रखी आधा किलो प्याज “स्टेट बैंक लाकर” में रख आये,अरे प्याज सजाने की चीज है,दिखाने की चीज है,लोग तो नोटों के हार की जगह “प्याज के हार ” दाल रहे है, त्यौहार पर मिठाई की जगह ” प्याज पैक” गिफ्ट कर रए हैं,बाज़ार में फ्रिज टी.वी. खरीदने पर फ्री गिफ्ट में १०० ग्राम प्याज मुफ्त मिल रई है,वो लाकर में रख आये,घर में रखते तब जानता….किसके शोकेस में सजती. अमां लोग फिरौती में प्याज मांग रहे हैं,वो दीनानाथ हैं,दही वाले…..कोई कल उनके लौंडे को उठा ले गया किडनैपर ….अब फोन करके धमकी दे रहा है…………लड़का जिंदा चाहिए तो एक टन प्याज बोरिंग वाली पुलिया के नीचे पहुंचा जाओ,प्याज नासिक रेड होनी चाहिए………भय्या यहाँ पुरे शहर में कुल मिलाकर एक टन प्याज नहीं है,उसे फिरौती में प्याज कहाँ से दें,वो भी नासिक रेड………लाला जी ने बहुत खुशामद की किडनैपर की भय्या जो एक-दो करोड़ लेना है,ले-लो……..बड़ा धीट किडनैपर है,कहता है रोकड़ा नहीं,अपुन अनियन मांगता है,बोले तो शाम तक तेरे पट्ठे का गला रेट दूंगा शान्ड़ें…….हाँ नासिक रेड न हो सके,तो डील दुसरे क्वालिटी प्याज से भी हो सकती है…………….अब पुलिस नें आस-पास के दो-तीन शहरों से प्याज इकठ्ठा किया है,तब एक टन हो पाया है. और ये सरकार “पहले क्रांतियों पर क्रांतियाँ ” लाती थी
हरित क्रान्ति से लेकर हरित क्रान्ति उन्नतशील वीजों और रासायनिक उर्वरक प्रयोग से अन्न उत्पादन में आत्म निर्भर पीली क्रान्ति खाद्य तेल फसलों (तिलहन) उत्पादन में प्रगति सफेद क्रान्ति प्रबंधन,नस्ल संकरण,नयी प्रजातियों का विकास दुग्ध उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि या “आपरेशन फ्लड”नीली क्रान्ति संकरण,अनुसंधान,प्रबंधन,नयी प्रजाति विकास मछली उत्पादन में आशातीत सफलता गुलाबी क्रान्ति झींगा उत्पादन में वृद्धि भूरी क्रान्ति चमड़ा उत्पादन कोकोआ उत्पादन गोल्डन क्रान्ति शहद उत्पादन विकास गोल्डन रेशा क्रान्ति जूट उत्पादन में वृद्धि धूसर क्रान्ति ग्रे रिवोल्यूशन उर्वरक उत्पादन में वृद्धि लाल क्रान्ति रेड रिवोल्यूशन टमाटर उत्पादन एवं विकास गोल क्रान्ति राउंड रिवोल्यूशन आलू उत्पादन में वृद्धि सिल्वर रेशा क्रान्ति कपास उत्पादन एवं विकास सिल्वर क्रान्ति सिल्वर रिवोल्यूशन अंडा/पोल्ट्री विकास काली क्रान्ति ब्लैक रिवोल्यूशन पेट्रोलियम उत्खनन विकास
नकली आंसू निकालने को प्याज का छिलका भी न मिले,मरने के बाद तेरे किसी भी संस्कार में प्याज नसीब न हो,अरे क्यों नहीं लाती ……………चला दे “प्याज क्रान्ति” आनियन रिवोल्यूशन” फिर देख तमाशा जनमत का. भारत देश को एक “प्याजी क्रान्ति” की दरकार ………
……..बहुत हो चुकीं क्रांतियाँ …….
कुछ गंभीर हो जाए-
“हरित क्रान्ति” या “ग्रीन रिवोल्यूशन”………चलाया गया,और भारत अपने अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर तो हुआ ही,अन्न निर्यात की स्थिति में भी आ गया…………… इसके लिए समस्त राष्ट्र को भारत में हरित क्रान्ति के जनक “डा. स्वामीनाथन” और विश्व में हरित क्रान्ति के जनक “डा. नार्मन ई. वोर्लाग” को नमन करना चाहिए. वरना साठ के दशक तक अपने खाद्दांत ज़रूरत के लिए विश्व समुदाय का मुंह ताकना पड़ता ठा,और अन्य देशों से आयात करना पड़ता…………………… और हम खाने पर मजबूर थे
पत्थर समान अमरीकी लाल गेंहूँ “लरमा”,अमेरिका हमें आयात करता था,बफर गोदामों में भरा तीन-चार वर्ष पुराना घुना-बेकार(लगभग मानव उपयोग के लिए निरर्थक) लाल गेंहूँ,और हम उसी से संतुष्ट/तृप्त होने को बाध्य थे.अमेरिका अपने सुरक्षित अनाज भंडारों में नए अन्य भंडारण के लिए,बफर गोदामों से तीन-चार वर्ष पुराना गेंहूँ “निष्प्रयोज्य” मानकर,उसे निस्तारित करने के लिए समुन्द्र में फेंक रहा था,ताकि बफर गोदाम खाली करके नया “गेंहूँ” भंडारित किया जा सके. तब भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री के विशेष अनुरोध पर अमेरिका हमें वो गेंहूँ सशुल्क निर्यात करने के तैयार हुआ था,और हमने उसका काफी मूल्य चुकाकर वो “सशुल्क मानवीय सहायता” निर्यात की थी,क्योंकि तब हम मजबूर थे,अपने ” उदराग्नि ” शांत करने के लिए.ध्यान रहे येही भारत राष्ट्र के लिए वो “क्रांतिक अवस्था” की घडी थी,जब भारत की कमर अप्रत्याशित रूप से पाकिस्तानी और चीनी आक्रमण ने तोड़ दी थी,हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा गयी थी.संकट के उस क्रांतिक दशक में “महान अग्नि परीक्षा” से गुज़रते हुए,हमारे नेतृत्व ने एक गणतंत्र को विखरने से भाचाया….और ये हुआ “हरित क्रान्ति” और “जय जवान-जय किसान” के सहारे. उसके बाद हमने मुड़कर पीछे लौटने की कभी चेष्टा ही नहीं की,हम क्रांतियों पर क्रांतियाँ आयोजित करते गए,और सफल हुए.ये मुलभुत क्रांतियाँ कौन सी थीं और उससे हमने क्या पाया ? – कहने का तात्पर्य ये है,जब-जब हमने अपनी भोजन
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