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पुर्न: जन्म मानव के लिए सदैव “अदभुद,अलौकिक,और विस्मयजनक” एक अनसुलझी पहेली रहा है.जिसका किसी धर्म विशेष से कोई लेना देना नहीं रहा है,न विज्ञान कभी इसकी पुष्टि कर पाया है.
ये सत्य है,कि इस नश्वर संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है,और विनाश एवं निर्माण कि चरण वद्ध क्रिया सदैव चलती है,जन्म और मृत्यु का अनवरत क्रम चलता रहता है. पर क्या एक जीव कि मृत्यु उपरान्त उसका फिर से जन्म हो सकता है,क्या नष्ट हुआ अनु पुन पूर्व अवस्था में संयोजित हो सकता है ?
पुर्न: जन्म जैसी कोई घटना विश्व के किसी भी देश में “मुस्लिम समुदाय” में नहीं घटी है,या यूँ कहें,कि ऐसी घटना मुस्लिम समाज में आज तक घटने का कोई उल्लेख नहीं मिलता,न ही मुस्लिम धर्म के साहित्य अथवा पवित्र कुरआन में, और नाही मुस्लिम समाज से जुडी अन्य सन्दर्भों,साहित्यों,स्रोतों में दर्ज हैं.
पुर्न: जन्म की सबसे अधिक घटनाएं “भारतीय हिन्दू धर्म के अनुयायी समाज” में घटती देखी गयी हैं,और हिन्दू धर्म विश्व का एक मात्र धर्म है,जिसका दर्शन पुर्न रूप से “पुर्न: जन्म” पर आधारित है. पर ये भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पुर्न: जन्म जैसी घटनाएं अधिकांशत: “विकासशील अर्थव्यवस्था वाले तीसरी दुनिया के पिछड़े देशों” में और विशेष रूप से अति पिछड़े गरीब और अशिक्षित परिवारों” में किसी के पुर्न: जन्म की घटनाएं दिखाई देती हैं.
पुर्न: जन्म का दावा करने वाले बालक या बालिका अपनी १० वर्ष की आयु पूरी करते-करते अपनी पूर्व जन्म सम्बन्धी घटनाएं और ज्ञान भूलने लगते हैं,और अगले दो-चार वर्षों में वे “अपने पूर्व जन्म सम्बन्धी सभी जानकारियाँ” पूरी तरीके से भूल जाते हैं.
पर ये कहना अधिक सारगर्भित और उपयुक्त लगता है,कि……प्रत्येक असत्य कहीं-न कहीं सत्य के खंडहर पर खड़ा होता है,और प्रत्येक झूठ में कहीं न कहीं सत्य का समावेश होता है,इसी प्रकार पौराणिक किदवंतियाँ कथाएं और मिथक कहीं न कहीं सत्य के आधार पर उपजे,और अपने में सारगर्भित गूण रहस्य और ज्ञान की कुंजी छिपाए हुए हैं. अब तक के अनुभव,अनुसन्धान से इतना अवश्य कहा जा सकता है,कि हाँ “पुर्न: जन्म” एक भौतिक सत्य से परिपूर्ण अलौकिक घटना है,जो यदा-कदा अलग-अलग स्थानों पर,भिन्न-भिन्न समाज और समुदाय,जातियों और धर्मों में यदा-कदा घटती रहती है,और लोगों में इहलोक और अलौकिक शक्तियों के साथ-साथ एक स्रष्टा (भगबान) की उपस्थिति के विश्वास को दृण,और आस्था बढाती है.
क्रमश:
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