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धर्म और हिंसा

Achche Din Aane Wale Hain
Achche Din Aane Wale Hain
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धर्म का उदभव मानव कल्याण और शांति के उद्देश से हुआ,परन्तु इतिहास साक्षी है,कि संसार में आज तक जितनी हिंसा,उपद्रव,हत्याएं,और दंगे हुए सब किसी न किसी धर्म के नाम पर हुए,जब जब मानवता कलंकित हुई,तब तब धर्म के नाम पर हुई.धर्म अपने मूल अर्थ खो चुके हैं,और वर्तमान में धर्म और अध्यात्म एक दुसरे से बहुत दूर हट चुके हैं,जब जब धर्म के नाम पर लोग एक जुट हुए,तब तब धर्म के इन उपासकों ने हिंसात्मक कार्य किये.

आज धर्म अपने मूल स्वरुप और मूल भावना को खो चुके हैं,लोग धर्म के नाम पर भीड़ इकट्टा कर रहे है,और प्राथना,एवं भगवान् से आसक्ति व्यक्त करने के लिए लोग समूह और भीड़ एकत्रित कर रहे है,जबकि इतिहास इसका साक्षी है,कि जब जब भगबान को किसी ने पाया है,अथवा भगबान के दर्शन प्राप्त किये हैं अकेले में ही ऐसा संभव हुआ है,मूसा भगबान के दर्शन एवं दिग्य्वानी के लिए कोहेतूर पहर पर एकांत में ही साक्षात् कर पाए,मुहम्मद भगबान का सन्देश जिब्राल से प्राप्त करने गारे हिरा (एक गुफा) में एकांत में जाकर ही प्राप्त करते थे,बुध को बुद्धत्व कि प्राप्ति एकांत में हुई,महावीर ने भगवान् के दर्शन एकांत में संभव हुए,हमारे देश के साधू महात्मा भगवान् के साक्षात् दर्शन के सुदूर हिमालय कि कंदराओं पर एकांत में तपस्या करते रहें हैं,अर्थात ये स्पष्ट है ,कि भगवान् केवल एकांत में अपने भक्त को दर्शन देते हैं,और एकांत में कि गयी प्रार्थना को ही महत्त्व देते हैं,जबकि आज हम धर्म और उपासना के नाम पर ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकठ्ठा कर भगबान को प्राप्त करना चाहते है,जोकि एक असंभव कार्य है.

आज हम धर्म के नाम पर ,धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं,जिससे किसी का कल्याण कभी नहीं हो सकता.आज मानव ने धर्म को एक आग्नेआस्त्र बना लिया है.संसार में धर्म के नाम पर करोनो हत्याएं और उप्दर्व किये गए,कहीं पोप ने अपने हित लाभ के लिए लाखों निर्दोष अव्लाओं को चुड़ैल घोषित कर जिंदा जलवा दिया,कहीं हिटलर ने यहूदी धर्म से अपनी कुंठा निकलने के लिए लाखो लोगों को कंसंट्रेशन कैम्पों (यातना घरों) और गैस चैम्बरों में तर्प तर्प कर मार दिया,भारत और पकिस्तान में धर्म के नाम पर दंगों में लाखों लोग मार दिए गए.धर्म सदैव मानवता के कल्याण और परोपकार के नाम पर निर्दोषों कि बलि चढ़ाता रहा है.प्रत्येक हिंसा और हत्या में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कहीं न कहीं धर्म का हाथ होता है,

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