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मुल्ला नसीरुद्दीन की बीबी गुलबदन एक दिन सवेरे-सवेरे उठकर मुल्ला से बोली,आज तो मैंने गज़ब का सपना देखा,सुनोगे तो हैरान हो जाओगे……मुल्ला बोला नहीं भी सुनना चाहूँगा,तो भी सुनाओगी,सो फ़टाफ़ट सुना ही डालो….क्या गज़ब देखा है.
गुलबदन बोली,रात मैने सपने में देखा,कि एक बाज़ार में दिमाग ही दिमाग बिक रहे हैं, बस आदमी और औरतों के मस्तिष्क बिक रहे हैं उस बाज़ार में……..कोई न्यूटन का दिमाग बेच रहा है,कोई आइन्स्टीन का,कहीं जेम्स वाट का दिमाग बिक्री के लिए रखा है,
राजा,महाराजा,ओहदेदार,जमींदार,जमांदार,किसान,भिखारी,वेश्या……..सबके दिमाग बिक रहे हैं. मुल्ला तो अचरज में पद गया,बोला कमाल हो गया……..किस भाव विक रहे थे दिमांग वहां…………………गुलबदन बोली,कोई एक रेट तो था नहीं,जैसा दिमाग-वैसा भाव………….कोई एक करोड़ का……………कोई एक लाख का……………….कोई एक हज़ार का……….
मुल्ला बोला अच्छा ज़रा बताना मेरा दिमाग भी बिक रहा था,और किस भाव…………………..गुलबदन बोली,बता दूंगी तो तुम्हें दुःख होगा……….बस पूछो मत……….तुम्हारा दिमाग बिक तो रहा था…..पर कोई खरीदार नहीं था उसका,दुकानदार दर्जन के भाव बेच रहा था…….१ रुपया दर्जन…….एक रुपया दर्जन……साथ में दो दर्जन फ्री………फ्री……..फ्री……फ्री…..फ्री सेल………..बम्पर आफर……………………पर बिका कोई नहीं.
मुल्ला को ताव आ गया,कि ये तो बड़ी फजीहत हो गयी,पर मुल्ला खून का घुट पी गए,……………………..अगले दिन सवेरे मुल्ला बड़े चाहेकते हुए उठे,बोले बेगम कमाल हो गया………आज मैंने सपने में देखा,मुंह कि नीलामी चल रही है,बाज़ार लगा है,मुंह ही मुंह रखे हैं,भीड़ है खरीदने और बेचने बालो कि,मेला सा चल रहा है…….कोई बोली एक अरब,कोई एक करोड़,कोई १० करोड़,कोई लाख में कोई हज़ार में…..एक से एक महान व्यक्तियों के मुंह नीलाम हो रहे थे.
गुलबदन ने पूछा,क्या मेरा मुंह भी उस नीलामी में रखा था,मुल्ला बोले नहीं तुम्हारा मुंह नीलामी में नहीं रखा था……………..अरे तेरे मुंह में तो सबके मुंह नीलम हो रहे…………बाज़ार ते तेरे मुंह में ही लगा था…..मुल्ला ने चप्पलें तो पहले ही निकाल हाथ में ले ली थीं,सो लंगोट चढ़ा सरपट …….
नारी के साथ किया परमात्मा ने पक्षपात…शेष आगामी अंक में….
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