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“पुरुषोत्तम नागेश ओक” का तेजोमहालय” और “ताजमहल”

Achche Din Aane Wale Hain
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“पुरुषोत्तम नागेश ओक” का तेजोमहालय” और “ताजमहल”

विद्वान इतिहासकार श्री ओक जी,ने ताजमहल को “हिन्दू” इमारत सिद्ध करने के लिए जो तर्क और एतिहासिक प्रमाण अपनी पुस्तक में दिए हैं,उनमें से अधिकाश “ओक जी के पूर्वाग्रह और उनके धार्मिक विश्वास” से प्रेरित एवं कपोल-कल्पित हैं,साथ ही कुछ प्रमाणिक साक्ष भी दिए हैं,पर मात्र कुछ साक्ष और एतिहासिक तथ्य,ताजमहल को हिन्दू इमारत साबित करने के लिए प्रयाप्त नहीं माने जा सकते.

नागेश ओक जी ने,मुग़ल बादशाह बाबर की पुत्री द्वारा लिखित ,बाबर की मृत्यु के अंतिम क्षणों में,आगरा में एक बड़े गुम्बद बाली इमारत में बाबर की अंतिम साँसें लेने,के विवरण,से ये सिद्द करने का प्रयास किया है,की ताजमहल जैसी इमारत बाबर के शासन काल में आगरा में मौजूद थी.जो शाहजहाँ के शासन काल से बहुत पहले का काल है,फिर शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण कैसे कर दिया.

राजपूत राजा से शाहजहाँ द्वारा,ताजमहल के लिए यमुना तट पर भूमि लेना और उसे बदले में भूमि का दूसरा टुकड़ा देने,से प्रमाणित करने का प्रयास किया है,की ताजमहल पूर्व में राजपूत राजा का राज प्रासाद था,जिसे शाहजहाँ ने हड़पने के उद्देश मात्र से,मुमताज़ की कब्र के रूप में चुना.

इसके अतिरिक्त,केवल हिन्दुओं को ही किसी नदी का मार्ग बदलने का ज्ञान होना,ताजमहल के पत्थरों पर अंकित कुछ हिन्दू धर्मों से सम्बंधित चिन्हों,टैवर्नियर के यात्रा वृतांत और संस्मरण,कब्रों की माप,मुमताज़ की मिर्त्यु चौदाह्बें बच्चे के जन्म के दौरान होना,शाहजहाँ के शासन काल में पड़े अनेक दुरभिक्षों,शेरशाह सूरी युद्द आदि से प्रमाणित करने का असफल प्रयास किया है,पर koi भी प्रमाण उनके द्वारा aisa नहीं दिया gaya है,jiske aadhaar पर ताजमहल को हिन्दू इमारत सिद्द किया जा sake,ओक जी ने swam को charchit करने मात्र के उद्देश से aisa किया jaana ही प्रतीत होता है.

“श्री नागेश ओक एवं पवित्र काबा”
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इसी क्रम में नागेश ओक जी ने”मक्का स्थित पवित्र काबा” को भी हिन्दू इमारत सिद्द करने की “बचकाना” हरकत भी कर डाली ,ताजमहल के बाद कई अन्य मुस्लिम/इस्लामिक इमारतों को भी “हिन्दू इमारत” सिद्द करने का असफल प्रयास किया,जो उनके अप्रमाणिक अतिबादी सनातनपंथी विचारों की पराकाष्ठा को दर्शाता है.
तेजोमहालय पुस्तक की आंशिक सफलता ,से विद्दन नागेश ओक जी अपने सनातान्पंथी धार्मिक विचार,और निजी पूर्वाग्रह से इतने अधिक भ्रमित,और अतिवादी हो गए,कि उनके आगामी सभी लेख नितांत निम्न स्तरीय और अप्रमाणिक हो गए,कि “नागेश ओक जी इतिहासकार होना संदिग्ध” प्रतीत होता है.

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