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फिर चला जूता ……
लो अब फिर जूता चप्पल चल गया,हांलाकि स्थान और पात्र अलग हैं,पहले अमेरिका के राष्ट्र पति बुश पर जूता चलाया था,एक इराकी पत्रकार ने,हांलाकि निशाँ चूक गया था,पर इस प्रकरण ने इतनी चर्चा बटोरी थी कि इराकी पत्रकार रातोरात वामपंथियों का रोले माडल बन गया,निशाना तो पत्रकार का सटीक था,पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुस्त और सतर्क निकले,जो समय रहते झुक कर बार को बचा लिया,और उससे भी महत्त्व पूर्ण बात ये थी,कि घटना के बाद भी राष्ट्रपति हंस रहे थे.
ये घटना विश्व में इतनी चर्चित हुए,के अमेरिका के “वाटरगेट” प्रकरण कि भी इतनी चर्चा नहीं हुई,नहीं विल गेत्ट्स और पामेला प्रकरण पर इतनी है तोबा मची,इस जूते कि मार कि गूंज समस्त विश्व में सालों गूंजती रही,और जिस ब्रांड का जूता मारा गया था,उसकी रिकार्ड बिक्री हुई,मांग भी सबसे ज्यादा अमेरिका में ही रही,हद तो तब हुई,जब एक अमरीकी व्यवसाई,ने जुटा मारने कि सुबिधा का खेल प्रस्तुत कर दिया था,खैर अब घटना अलग है,स्थान अलग है,पीरित अलग है,आक्रान्ता अलग है……
अब जूता के शिकार हुए है,सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी(ए०बी०एस०ए०) ब्लाक बहेढ़ी के,और जूता मारा है उनकी अधीनस्थ नियुक्त अध्यापिका ने,पर यहाँ बात कुछ हटके है,क्यूंकि इसबार जूतमपैजार हुई,पीढ़ित के अपने कार्यालय में,और यहाँ निशाना अचूक था,अधिकारी महोदय को न हिलने का मौका था,न बचाव करने का समय…………वहां अंकल सैम (जार्ज बुश) कि सुरक्षा में थे सैकड़ों सुरक्षा कर्मी,कमंदोज़,जिन्होंने अक्रन्तक हम्बलर को तुरंत कब्ज़े में कर लिया,वर्ना जाने……………..पर यहाँ तो koi सुरक्षा कर्मी,और न कमांडो……..बस मामला नॉन स्टॉप था…….वोह तो भला हो,के उस दिन कार्यालय पर स्कूलों का आदित चल रहा था,और काफी भीढ़-बहरह थी,सो जल्दी ही लोगों ने बीच बचाव हो गया,नहीं तो……….?
अब खबर ये भी है की जिला विद्यालय निरीक्षक संघ ने मांग रखी है कि हमारे फिएल्ड में जोखिम को देखते हुए,सरकार को सुरक्षा देनी चाहिय,मांग जायज़ लगती,अरे उगाही,और हफ्ता वसूली वाले भी फिएल्ड में अकेले नहीं जाते,चार छै: टपोरी मुन्नाभाई तो साथ लेकर जाना पढ़ता है,फील्ड में जोखिम बहुत है भाई……………………………
वैसे भी इसी रंक के नायब तहसीलदार को तो गनर भी मिलता है,और अर्दली भी,इन्हें ऐसे ही निरीक्षक अधिकारी बना दिया,सो सरकार को चाहिए कि ज़ैद श्रेणी कि सुरक्षा न सही,कम से कम,एक-आध ब्लैक कमांडो,बंब निरोधक दस्ता,फ्लाग मार्च दस्ता,एक – दो एस०पी०जी० कमांडो,एक पी०ए०सी० बटालियन,दस बीस पोलिस सिपाही मय एक इंस्पेक्टर सहित,डोग स्कुआय्ड वगैरह तो होना ही चाहिय,भाई जब देश में गुंडे-मवालियों को सुरक्षा गर्द और गनर मिल सकते हैं,तो इन्हें क्यों नहीं,मेरी गली के मुन्ना बही,पपू कवाड़ी,तेजा हलवाई सबको गनर मिले है,और भैया जब सरकार सांसदों का वेतन भत्ता ५०० गुना कर सकती है,दिल्ली कि सबसे महेंगी कालोनी में फ्लैट दे सकती,तो इनकी सुरक्षा का इंतज़ाम तो हों चाहिय.
वैसे आक्रान्ता/हमलावर अध्यापिका महोदय: को कम से कम जूता तो नहीं मारना चाहिय था,अगर ये परंपरा बन गयी,तो शुभ संकेत नहीं है,और ईराकी पत्रकार मैडम के खिलाफ पेटेंट का उल्लंघन,कॉपी राईट का दुरूपयोग,और पाईरेसी का केस कर सकता है,और बेकार के बखेढ़े में पर गयीं तो फजीयत हो जायेगी,अरे भाई मारना ही था,तो कुछ मौलिक तरीका निकालती,अपनी तकनीक ईजाद करती,पर आप लोगों कि आदत नक़ल कि पढ़ गयी हो,भाई २० साल नक़ल करके पास होने पर,आदत तो पढ़ ही जाएगी.
अरे भाई जूता ही तो चला है,चलने की चीज़ है,वोह तो चलेगी ही,इसमें इतना बबला बखेढ़ा खड़ा करने की क्या बात है………..? हाय- तोबा किस बात की है…..? पर भैया जूता चलने की चीज़ होता है,सड़कों पर,फुटपाथों पर,पगडंडियों,टेड़े-मेड़े,ऊँचे-नीचे रास्तों और गलियारों पर,बागों और चौराहों पर,जूता किसी के सर पर चलाने की चीज़ थोड़े ही होती है,जो लिया मैडम ने तपाक से मार दिया,वोह भी अधिकारी महोदय के सर पर……..?सर न हुआ,मानो चौराहा हो गया—————-.
और वैसे भी जूता औरतों के चलाने की चीज़ थोड़े ही होती है,मैडम को अगर चलाना ही था,तो बेलन चलातीं,झाड़ू चलाती,चिमटा या फुकनी चलाने का विचार भी बुरा नहीं था,अरे मारने के सैकड़ों अन्य तरीके/जुगाड़/नुस्खे है ……
१- सबसे अच्छा तो ये था कि किसी जंगली शेर से अधिकारी को कठवा देंती,फिरते रेबीज़ के १४ इंजेक्शन लगवाते,तब पता लगता,किसी के स्कूल को चैक करने का मतलब किया होता है……..पर इस नुस्खे में थोड़ी प्राब्लम है,के शेर आता कहाँ से,चिड़ियाघरों से और सर्कसों से तो मेनका बहेनजी ने नदारत करा दिए,जंगलों में वैसे ही शेर ढूंढे नहीं मिलता,और अगर मिल भी गया,तो किया गारंटी अधिकारी को ही काठेगा,उल्टा मैडम को ही काठ लिया तो…….?
२- अच्चा तरीका तो ये हो सकता था,कि एक नागराज कोबरा रखकर मिठाई के डिब्बे,साहब के घर दे आती,और जब साहब मिष्ठान सुख के लिए डिब्बा खोलते,तो सामने नागराज यमराज बनकर खड़े होते,तें बोल जाती………..
३- एक तरीका ये भी सही था के लेजाकर साहब को किसी गहरी नदी के पास,दे देंती पानी में धक्का,फिर पता चलता कि मैडम भी कोई ऐरा-गैर नहीं है,मैडम कड़ी होंती ऊपर पुल पर,और साहब पानी में अप-डाउन हो रहे होते,हाथ जोड़ कर बिनती कर रहे होते,कि मैडम गलती हो गयी,भूल से भी कभी आपके स्कूल कि तरफ नहीं झाकुंगा,बस इस बार बचा लो….और तब मैडम अपने भाग्य पर इतराती हुई,अधिकारी महोदय को पानी से निकालती,और कहती…..अबके से मत पहुँच जाना……म्हारे सकूल—-
४- एक तरीका ये भी था कि, मैडम लेजाकर दाल देंती,ए०बी०एस०ए० महोदय को किसी बनैले सांड के सामने—-फिर देखते कौन बढ़ा बाला है,पर इसमें भी कुछ लोचा हो सकता है,सुना है,बुल फायटिंग का भी भारी विरोध चल रहा है,सारे विश्व में आजकल,बेकार कहीं उलटी मैडम कि फजीहत हो जाती.
५- बैसे संख्या खिलाने का विचार भी बुरा नहीं है,लेजाकर किप्प्स की पिस्ता बर्फी में संख्या या धतूरा मिलकर खिलाया जा सकता था,सूना है अधिकारी मिठाई के बहुत शौक़ीन होते हैं,पर इसमें किसी की जान ही चले जाने का खतरा है,सो मिठाई में जमाल्घोता मिलकर खिलाया जा सकता था,जब रात भर लोटा लेकर भागते तो,एक अध् महीने तक तो चलने फिरने की शारीर में जान ही न बचती,लो अब करो स्कूल चेक,बड़े भागे फिरते थे……..
६- न हल्दी लगे,न फिटकरी,फिर भी रंग चोखा,सबसे अच्छा आइडिया तो ये थे,कि किसी लारी या ट्रक के आगे धक्का दिया जा सकता था,बिजली का करंट लगाया जा सकता है,सुपारी भी दी जा सकती थी,और तो और सबसे अच्छा तो धरा ३७६ का प्रयोग पटेंट नुस्खा हो सकता था…..
पर अब पछताए क्या होय,जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत,आज दिनांक ०४-०९-२०१० कि ताज़ा खबर है,के शिक्षिका को पुलिस ने पकड़ कर कोर्ट में पेश किया,और मजिष्ट्रेट महोदय ने ज़मानत नामंज़ूर करते हुए शिक्षक को जेल भेज दिया है……कहते हैं न पत्थर पर सर मारोगे,तो अपना सर फोड़ो गे …………कबीरा खड़ा बाज़ार में ,लिए लकुटी हठ……………..कलयुग है भाई……मगर हम तो कुछ नहीं कहेंगे,हम तो चुप ही रहेंगे—
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