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परीक्षा परिणाम का देश पर क्या होगा असर

सामाजिक मुद्दे
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सी बी एस ई बोर्ड के कक्षा 10 का परीक्षा परिणाम  घोषित हो गया देश के नौनिहालों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए शत प्रतिशत अंक हांसिल किये। इस वर्ष का परीक्षा परिणाम  शोध और चर्चा का विषय भी है। इस वर्ष बोर्ड परीक्षा में जिस प्रकार के अंक छात्रों ने प्राप्त किये हैं उनसे शिक्षा विशेषज्ञ भी हतप्रभ हैं हिंदी भाषा मे 100 में 100 अंक प्राप्त करना बताता है कि छात्रों ने निश्चित ही बिना कोई त्रुटि किये अपने उत्तर प्रस्तुत किये होंगे पर अध्यापकों का एक बड़ा वर्ग इससे सहमत नजर नहीं आता है अध्यापक मानते हैं कि ऐसा सम्भव ही नहीं है कि पूरी कॉपी में व्याकरण संबंधी कोई त्रुटि पकड़ में न आई हो और अगर ऐसा है तो क्या किसी विशेष उद्देश्य के तहत छात्रों को इतने अंक दिए गए।
सी बी एस ई के विगत 5 वर्षों के परीक्षा परिणामों पर नजर डालें तो टॉपर छात्रों के प्रतिशत में लगातार इजाफा हुआ है यह इजाफा न सिर्फ विज्ञान विषयों में हुआ बल्कि आर्ट के विषयों में भी हुआ है। समाज शास्त्र अर्थशास्त्र हिंदी संस्कृत और अंग्रेजी जैसे विषयों को अभी तक मार्किंग के दृष्टिकोण से खराब विषयों में गिना जाता था पर इस वर्ष यह मिथक टूट गया है।
कभी कभी सी बी एस ई के परीक्षा परिणाम एक सोची समझी साजिश का परिणाम नजर आता है। कुछ वर्षों पहले तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करना एक कठिन काम माना जाता था। आप सबको पता होगा कि 12 वीं के बाद ज्यादातर मेधावी छात्रों का सपना देहली कानपुर इलाहाबाद जैसे बड़े शहरों में स्थित किसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेना होता है। चूंकि यह प्रवेश अधिकांशतः मेरिट के आधार पर होते रहे हैं जिससे पिछले 5 साल में देहली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सभी पाठ्यक्रमो में सी बी एस ई और आई सी एस सी बोर्ड के ही छात्रों को प्रवेश मिला है। इस पूरी सूची में राज्य बोर्ड के छात्र न के बराबर ही दिखते हैं इस वजह से इन बोर्ड के मेधावी छात्र लगातार सी बी एस ई में माइग्रेट हो रहे थे।  शायद यही बजह रही कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद ( यु पी बोर्ड) को अपने परीक्षा पैटर्न और नंबर सिस्टम को बदलने पर मजबूर होना पड़ा और यु पी बोर्ड इलाहाबाद में भी छात्र आसानी से 90 प्रतिशत अंक हांसिल कर रहे हैं।
अगर हम पिछले 5 वर्षों के सरकारी फैसलों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि सरकार ने समूह ग ( सरकारी सेवा की तृतीय श्रेणी ) जिसमे नौकरी आवेदन की योग्यता 12 वीं ही है उनमें साक्षात्कार प्रक्रिया को समाप्त किया गया है ऐसे में उनकी शैक्षिक प्रमाणपत्र के अंक कई प्रतियोगिताओं/नौकरी में चयन का आधार बन रहे है ऐसे में भी सी बी एस ई के छात्र ही अपनी अच्छी मेरिट के लाभ उठा रहे हैं। देश मे एक शिक्षा प्रणाली लागू न होने के कारण अलग अलग बोर्ड अपनी श्रेष्ठता सावित करने की होड़ में लगे हैं जिसमे विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश और सरकारी नौकरी में चयन, शिक्षा बोर्ड की श्रेष्ठता के आधार हैं और इसमे कोई भी बोर्ड पिछड़कर अपनी छात्र संख्या और रेपुटेशन का नुकसान नहीं करना चाहेगा। एक लंबे समय तक यु पी बोर्ड को अपने कठिन पाठ्यक्रम के लिए जाना जाता रहा है वह भी आज छात्रों को नंबर लुटाने को मजबूर हो गया है।
इस परीक्षा परिणामो का छात्रों के जीवन पर बहुत बड़ा असर हो रहा है 95 प्रतिशत पाने वाला छात्र और उसके अभिभावक इसलिए दुःखी हैं क्योंकि उनके बच्चे के क्लास के दो छात्रों के 96 प्रतिशत नम्वर आये हैं। जो बच्चे अभी तक यह सोचे बैठे थे कि वह 95 प्रतिशत लाकर कम से कम विद्यालय टॉप कर सकते हैं उनके सामने अब 99 प्रतिशत का लक्ष्य है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जिस छात्र ने आज कक्षा 10 में 95 प्रतिशत अंक हांसिल किये हैं उसके सामने कक्षा 12 में इस प्रतिशत को बनाये रखना काफी तनाव पैदा कर सकता है और यह स्थिति उस छात्र के लिए तब और तनावपूर्ण हो सकती है जब छात्र का सामना पहले से तीन गुने अधिक और अपेक्षाकृत कठिन पाठ्यक्रम से होगा।
वास्तव में शिक्षा बोर्ड अपनी श्रेष्ठता की दौड़ में छात्रों और उनके माता पिता का मानसिक उत्पीड़न करने पर उतारू हैं नम्वर गेम में उलझने के कारण निजी कोचिंग सेंटर मलाई मार रहे हैं और विद्यालय अपनी उपलब्धि पर इतरा रहे हैं। जब यही शत प्रतिशत अंक प्राप्त छात्रों का सामना प्रतियोगी परीक्षा के कठिन प्रश्नों से होता है तब यह हौसला हार जाते हैं और इनमे ज्यादातर अवसाद में चले जाते हैं और कई तो आत्मघाती कदम उठाकर अपनी जीवनलीला समाप्त करने जैसे कदम भी उठा लेते हैं।
कुल मिलाकर नंबर गेम का यह अंतहीन सिलसिला हाल फिलहाल थमता नजर आ रहा है। और देश के किशोर इस नंबर गेम में वास्तविक ज्ञान से लगातार दूर होते जा रहे हैं।

अवनीन्द्र सिंह जादौन

शिक्षक /ब्लॉगर

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