Menu
blogid : 23122 postid : 1115667

सावधान मैं भी असहिष्णु हो गया हूँ

सामाजिक मुद्दे
सामाजिक मुद्दे
  • 24 Posts
  • 33 Comments

एक वर्ष पहले तक जिंदगी बड़ी चैन से कट रही थी मेरी गिनती घोर सहिष्णु और अमनपसंद लोगों में थी सरकारी मुलाजिम होने के कारण सभी धर्मों और जातियों से भरपूर मेलजोल था और किसी को कोई शिकायत ना थी।पर अचानक मोदी की सरकार आ गयी और एकदम कुछ गड़बड़ सा होने लगा। हमारे कुछ साथी जो दूसरी पार्टी से थे मुझे शंका और शक की नजर से देखने लगे, हालाँकि अभी तक उन्होंने मुझे और मैंने उन्हें कभी पराया नहीं समझा था पर पता नहीं क्यों अब मुझे देखकर वो मोदी की बुराई करने लगते और मेरा मत जानने की कोशिश करते, इस कारण कई बार बहस गलत दिशा में मुड़ने लगती और मैं भी सही बात को सही सावित करने पर अड़ जाता जिसके कारण अंततः मुझे जबरन मोदी समर्थक घोषित कर दिया गया। ऐसा क्यों किया गया मैं समझ नहीं पा रहा था काफी दिन बाद मुझे समझ में आया कि मैं अगड़ी जाति से हूँ और मेरी जाति को भाजपा का कैडर वोट माना जाता है।खैर एक लकीर सी हमारे बीच खिच रही थी और मैं अब चर्चा में असहनशील हो जाता था पर सहिष्णु था।कभी कभी मैं अपने समाज में प्रदेश सरकार की अच्छी नीतियों की चर्चा करता तो मेरे कुछ अन्य मित्र जो मोदी समर्थक थे,मुझसे उलझ जाते और कहते कि उनके साथ रहकर तुम्हारे दिमाग ख़राब हो गए हैं मैं उन्हें समझाता कि सही बात को सही कहना कोई गलत नहीं है और सरकारी कर्मचारी होने के नाते जनकल्याणकारी योजनाओं को सब तक पहुचाना मेरी जिम्मेदारी है पर मित्रों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।इस सब चक्कर में मैं अपने मित्रों को खोता जा रहा था। मैं प्रदेश सरकार में हस्तक्षेप रखने वाले कई लोगों का अजीज मित्र था । मेरी समस्याओं के निस्तारण पर अधिकांशतः कुछ ना कुछ अड़चन आ ही जाती थी जबकि  मेरे कुछ मित्र प्रशासन में अच्छी पकड़ रखते थे और मेरे लिए बहुत प्रयास भी करते थे ।इन सब के बाद भी मैं अभी तक सहिष्णु बना हुआ था।
   सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ने के कारण मेरी छुपी हुई प्रतिभा बाहर निकलने को व्याकुल थी। पारवारिक मान्यताओ और संस्कारो के चलते मैं विशुद्ध हिन्दू था सो अपने धर्म से जुडी पोस्ट को सोशल मीडिया पर लाइक करना और उस पर कमेंट करना मुझे पसंद भी था पर मुझे ये पता नहीं था कि अपने धर्म की तारीफ कर मैं दूसरे धर्म के लोगों के निशाने पर आ चुका था  और मेरे कुछ मित्र मुझे खतरनाक निगाहों से घूरने लगे थे जबकि मैंने कभी भी उनके धर्म के खिलाफ कोई पोस्ट नहीं डाली थी।मेरे लिखे अधिकांश लेख गैर राजनैतिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़े होते थे परंतु लोग उसमें असहिष्णुता खोजने में लगे थे और लाइक करने से कतराते थे जबकि हँसी मजाक और घर की फ़ोटो पर भरपूर और अपेक्षा से अधिक उत्साहवर्धन मिलता था। लाख सांप्रदायिक सदभाव की कोशिश के बाद भी लोगों ने मेरे लेखन में वाकायदा असहिष्णुता खोज भी ली थी पर मैं मन वचन और कर्म से अभी भी सहिष्णु ही था जबकि सोशल मीडिया पर मुझे टारगेट कर मेरे धर्म और कर्म पर प्रहार किया जा रहा था फिर भी मैं सहिष्णुता का नमूना बना सब कुछ देखने को मजबूर था।
      इधर समाज में भी उथल पुथल मची हुयी थी अगड़ा होने के कारण पिछड़े अपना मानने को तैयार नहीं थे और जो मानते थे उन्हें मेरा अनुसूचित जाति के लोगों के साथ घुलना मिलना रास नहीं आ रहा था मैं बड़े धर्म संकट में था मेरे लिए सभी मित्र जरुरी थे पर उन मित्रों में कई रेखाएं और समूह अब मुझे अलग अलग नजर आने लगे थे उनके बीच बाहर से सब कुछ सामान्य सा था पर अंदर बहुत कुछ धधक सा रहा था। मैंने लोगों में खिंचाव जानने के कारण जानने की लाख कोशिश की पर असफलता ही हाँथ लगी।सो मैंने निर्णय लिया कि अब कुछ दिन मित्र मंडली से दूर रहूँगा पर आठ दिन बाद ही सुनने को मिला कि भाजपा सरकार आने के बाद अगड़ो के दिमाग ख़राब हो गए है और उन्हें अब लोगों मेल मिलाप पसंद नहीं आ रहा है। मैं आलोचना की श्रेणी में नहीं आना चाहता था सो मैंने फिर से अपना पुराना ढर्रा अपना लिया ।अब अगड़े नाराज थे कहने लगे कि तुम अब बच्चे नहीं हो कुछ तो ख्याल करो , सीधी बात यह थी कि उन्हें मेरा सबसे मिलना पसंद नहीं आ रहा था। मैं बड़ा असमंजस में था कि आखिर क्या किया जाए ।पार्टी कैडर की बातें मुझे अच्छी ना लगती थी जाति विरादरी मैं मानता ना था बुजुर्गो के पुराने जातिगत सामाजिक नजरिये मुझे पसंद नहीं थे ।अंततः मैंने सबसे कठोर निर्णय लिया और स्वयं को सहिष्णुता की छवि से बाहर कर लिया और असहिष्णु बन गया ।
     मेरा स्वभाव अब चर्चा का विषय बन गया था मैं घोर हिंदूवादी व्यक्ति घोषित हो चुका था और शेष धर्मो के लोग मुझसे किनारा कर चुके थे। अगड़ी जाति का दम्भ मुझमे भरने लगा था और मैंने सोशल मीडिया में अपनी जाति के समूहों में सक्रिय सहभागिता करनी शुरू कर दी थी।कई राजनैतिक दलो द्वारा मेरा भाजपा से अघोषित रिश्ता जोड़े जाने के कारण मैंने जानबूझकर भाजपा की राजनीति शुरू कर दी थी ।अपनी फेस बुक फ्रेंड लिस्ट से शेष पार्टी के लोगों को चुन चुन कर अनफ्रेंड कर दिया था। समाज में असहिष्णु होने के कारण लोगों ने अब मुझ पर व्यंग्य करने बंद कर दिए थे क्योंकि अब मुझ पर व्यंग्य करने का मतलब था खरी खोटी सुनना।कई जाति बिरादरी के मेरे अच्छे मित्रों के बीच आपस में सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी से भी मुक्त हो चुका था हालाँकि वो सब अभी भी मेरे अच्छे मित्र थे और किसी को अब मेरे बारे में ग़लतफ़हमी नहीं थी।
     अब मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं असहिष्णु हूँ मुझे अब गलत को गलत नहीं कहना पढ़ता है मुझे अब अपने को किसी पार्टी में होने या ना होने का स्पष्टीकरण नहीं देना पड़ता है ।सोशल मीडिया पर अब केवल वे ही लोग मेरे संपर्क में हैं जो मेरी विचारधारा से सहमत हैं। मुझे लगता है कि काश मैं 20 वर्ष पहले ही असहिष्णु हो गया होता तो मेरे 20 वर्ष सांप्रदायिक सद्भाव के झूठ भरे दिखावे की भेंट ना चढ़ते। अब लगता है कि दिखावे भरे खोखले जीवन से असहिष्णु जीवन ज्यादा अच्छा है जिसमे झूठ और दोगलापन नहीं होता।

     

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh